*राधे राधे...*🙌🏼🌸💐

जसुमति मैया ने देखा कि गाँव के अधिकाँश बालक गुरू जी से शिक्षा ग्रहण करने जाते हैं, चाहे अति अल्प समय के लिये ही सही, किन्तु प्रत्येक बालक जाता अवश्य है गुरूशाला, फिर मेरा ही *कन्हैया* क्यों नहीं जाता? मैया चिन्तित हो गई, इतना बड़ा हो गया अब मैं भी इसे शिक्षा ग्रहण करने भेजूँगी।

                  ऐसा विचार कर मैया आँगन में ऊधम मचाते *कन्हैया* को पकड़ लाई और बोली-"लाड़ले सुत,शीघ्र ही स्नान आदि कर तत्पर हो जाओ, आज मैं तुम्हें पढ़ने बैठाऊँगी।" सहसा आई इसस्थिति से नटखट *कन्हैया* अचकचा गये।

उन्होंने मैया से पूछा-"मैया पढ़ा क्या जाता है?"
मैया ने कहा-वेद-शास्त्र पढ़े जाते हैं, मेरे लाडले।
*कन्हैया* बोले- मैया ! वेद-शास्त्र पढ़ने से क्या होता है?
मैया बोली- तत्व-ज्ञान होता है।
*कन्हैया*- ये तत्व क्या होता है, माँ
मैया- परमात्मा ही तत्व है, लाडले।
*कन्हैया* ने पुनः पूछा- मैया, परमात्मा के तत्व को जानने से क्या होता है?
मैया ने भी पुनः उत्तर दिया- भगवान की भक्ति मिलती है।

नटखट नन्हे *कान्हा* अभी भी कहाँ चुप रहने वाले हैं, उन्हें तो आज मानों प्रश्न पर प्रश्न पूछ कर मैया से ही सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना है। वह पुनः बोले- मैया, भक्ति से क्या मिलेगा?
मैया ने कहा- भक्ति से मुक्ति मिलती है । *ईश्वर* मिलते हैं।
*कन्हैया* - ईश्वर तो मिलेगें मैया, सत्य है, किन्तु तू यह बता कि उस समय वहाँ तू और बाबा भी मिलेंगे या नहीं और यह माखनचोरी भी करने को मिलेगी या नहीं।

मैया ने अपने लाडले लला को दुलारते, पुचकारते समझाते हुये कहा- ओ मेरे प्राण प्रिय *माखनचोर* वहाँ माखन की कोई कमी न होगी, वहाँ तुझे माखन चुराना ही नहीं पड़ेगा।

        इतना सुनना है कि नटखट नन्हे *कान्हा* बिफर उठे, कमल सम नयनों में मोटे-मोटे आँसू झलक आये,  बिसूरते हुये बोले- मैया जहाँ तू नही, बाबा नहीं, ग्वाल बाल नहीं, माखनचोरी नहीं वहाँ मैं क्यों जाऊँ? क्यों जाऊँ मैया  नहीं जाऊँगा।
                  और फिर प्रारम्भ हो गईं गहरी गहरी सुबकियाँ व हिचकियाँ- मैया, मुझे नही लेनी ऐसी मुक्ति, ऐसी भक्ति, जहाँ सखाओं के संग माखनचोरी का आनन्द नहीं, वहाँ मैं क्यों जाऊँ? क्या करूँगा मैं वहाँ जाकर? नहीं जाऊँगा।

मैया हतप्रभ ! हृदय में करूणा और वात्सल्य का सागर उमढ़ने लगा-हाय क्यों मैं ऐसा कर बैठी? मेरा लाड़ला प्राण-धन, इतने अश्रु अनवरत, मन में इतनी पीड़ा दे बैठी इसे, मैया विचलित हो गई। मैया के  सारे स्वप्न अपने प्राण-धन के अश्रुओं के साथ बहने लगे। इधर नटखट *कान्हा* का रो रो कर बुरा हाल-
              
"क्यों मैं वेद-शास्त्र पढ़ू, अपने मैया बाबा और ग्वाल सखाओं से दूर होने के लिये"-
                   द्रवित और अभिभूत मैया को अतहिं प्रभावित कर, नटखट नन्हे *कान्हा* ने मैया की ओर कारूणिक दृष्टि से देख कर अत्यधिक अबोध मासूम स्वर में मनुहार करते हुये कहा-
               "मैया, बहुतहिं जोर कि भूख लगी है नवनीत और दधि खाने को दे न"

विह्वल अधीर मैया ने अपने  प्राण - प्रिय - निधनी के धन को अपने में भींच लिया। धन्य परात्पर प्रभु धन्य यशोदा मैया। *६४ दिवस में ६४ कलाओं* में सिद्ध हस्त हो जाने वाले परमब्रह्म प्रभु की ऐसी वात्सल्यमयी *बालसुलभ - लीला।*

*जय हो नटखट गोपाल....*🙌🏼🌸💐
*जय हो माखनचोर....*🙌🏼🌸💐
*जय हो नंदलाल...*🙌🏼🌸💐

.

Post a Comment

0 Comments