"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 46

46*आज  के  विचार*

*( सती शिरोमणि  "श्रीराधारानी" )*

*!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 46 !!*



व्यभिचारी  तो हम हैं  वज्रनाभ !     कुलटा तो हमें कहना चाहिए ......स्वार्थ के चलते  कभी  शनि की पूजा करते हैं  कभी  राहू केतु  की भी माला जपनें बैठ जाते हैं .........अरे !     श्रीराधा रानी की बात छोड़ दो यहाँ तो   एक  साधारण बृज की गोपी भी  सती है......सतियों की भी पूज्या हैं,    यहाँ की बृज गोपियाँ  ।

हम भटकते हैं .......कभी इस देवता के पास  कभी उस देवता के पास ......पर  वज्रनाभ !  कृष्ण को छोड़  किसी ओर के पास जाते हुये  इन गोपियों को तुमनें देखा है ?    एक निष्ठ को ही तो सती कहते हैं ना ?  

जो इधर उधर भटकता रहे.........जो कभी एक का न हो सका .......उसे ही तो व्यभिचारी कहा जाता है ना  ?   

महर्षि  समझाते हैं   -     "रुढ़ भाव"  ही  सती की पहचान होती है .....रुढ़ भाव मानें.........एक के प्रति ही   भाव.......वह एक  चाहे बुरा हो  अच्छा हो .....सुन्दर हो या कुरूप हो........कैसा भी हो  पर  है हमारा......वो  हमारा है ,  हम सिर्फ  उसके हैं........बस   यही है   रुढ़ भाव  ।

जब साधारण गोपियों की स्थिति  इतनी उच्च है  तब  श्रीराधा कहाँ पर स्थित होंगीं   ये स्वयं ही विचार करो  वज्रनाभ  !

एक  बात और सुन लो........ये जितनी महानसती हैं   अरुंधती हों या  अनुसुइया  हों......इन सबको  तो   हाड माँस के पति  में  ईश्वर बुद्धि रखनी  पड़ती थी ......पर  गोपियों को  कृष्ण में ईश्वर बुद्धि रखनें की जरूरत   नही .......वो तो साक्षात् ईश्वर ही हैं .....उनका देह  कोई हाड माँस का देह नही .....प्राकृत देह नही था ........अप्राकृतिक  दिव्य देह था उनका  तो ...........इसलिये  सती अनुसुइया इत्यादि  से महान स्थिति थी गोपियों की ........फिर  मैं तो तुम्हे सुना रहा हूँ  उन गोपियों और सखियों की स्वामिनी    श्रीराधिका जी के बारे में ..........

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क्यों ,   तू नई आयी है  क्या इस बृज में  ?      

वही  "जटिला"   खुँसट बुढ़िया ...........जो अपनें को और अपनी बहू को ही बृज की एक मात्र सती सावित्री समझती थी ..........वही   एक  नई बहू को  समझाती हुयी चल रही थी ।

"राधा का संग न करना .........और यमुना में जाओ ना .....तो  साँवरे  रँग के    उस लड़के को तो देखना ही मत...........

और हाँ......राधा   बिगड़ गयी है.......उसका संग  मत करना ......उसकी सखियों का संग भी मत करना......सब बिगड़ी हुयी हैं........मुझे देख !   मैं अकेली हूँ  इस बृज मण्डल की सती ।

मैं आग में चल सकती हूँ.........अरे ! इतना ही नही  मरे को ज़िंदा किया है मैने .....ये सब सतीत्व के प्रभाव से होता है  ।

खूब पका दिया था उस बेचारी नई बहू को ..........इस जटिला नें ।

और  ऊपर से    कान भी भर दिए थे  श्रीराधा को लेकर  ।

बात   फैल रही थी...........पर   अपनी प्रिया को इस तरह बदनाम कैसे होनें दे सकते थे कन्हैया   ।

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लाला !   लाला !    कन्हैया  !   उठ ना  ! क्या हुआ तुझे  ?

पता नही क्या हो गया   आज कन्हैया को ..........घर में जैसे ही आये ....बस आते ही मूर्छित हो गए   ।

मैया घबडा गयी .......बृजपति नन्द घबडा गए .......ये क्या हुआ  ? 

नंदगांव के   सब ग्वाले  भागे भागे नन्द महल की ओर चले  ।

पर   दुःख  बढ़ता ही  जा रहा था नन्द गाँव में ..........क्यों की   पूरा दिन व्यतीत हो गया .......पर कृष्ण नें  अपनें नेत्र ही नही खोले  ।

वैद्य बुलाये गए......बड़े बड़े वैद्य  आये..........पर  कोई लाभ नही ।

दो दिन व्यतीत हो गए  कृष्ण को ये क्या हुआ  ?       रो रोकर बृजरानी का बुरा हाल .........कुछ भी करो ......कैसे भी करो .....पर  मेरे लाला को  ठीक करो .......हाथ पकड़ कर   झँझोरती  बृजरानी -  नन्द के  ।

पर  बृजपति नें भी  तो सबकुछ कर ही लिया था....और  कर ही रहे थे ।

और यहाँ तक की ......मथुरा से  वसुदेव जी नें   भी   वैद्य भिजवाये थे ....पर  कुछ लाभ नही हुआ   ।

मैया ! मैया !      कोई बाबा जी आया है ............देख तो !    

एक गोपी नें जाकर  भीतर सूचना दी  बृजरानी को ।

भिक्षा दे दे   बाबा को   ............रोते हुए  कहा  बृजरानी नें   ।

पर  आप लोग रो क्यों रहे हैं .........मैं रोते हुये  घर से भिक्षा नही लेता ........मुस्कुराते -  बड़े सुन्दर से  बाबा थे  .......जो  महल के ही भीतर आगये थे  ।     आप लोग अगर अपनी चिन्ता कहें तो   मैं कुछ कर दूँ  ?

हाँ  बाबा !  हम बहुत दुःखी हैं ..........ये हमारा पुत्र है .........पर पता नही  आज दो दिन हो गए हैं......न ये आँखें खोलता है ......न ये  जल ही पी रहा है.....बाबा !   कृपा करो आप !  यशोदा  बिलखते हुये बोली  थीं ।

अच्छा !   मैं देखता हूँ .........ऐसा कहते हुये  उन बाबा नें   नाड़ी देखी  कन्हाई की.......आँखें बन्दकर के नाड़ी को सुना .......फिर  वक्ष को भी  छूआ......आँखें देखीं........मुँह देखा ।

फिर  आकाश की ओर देखते हुये   कुछ बुदबुदाये  .................

बाबा के माथे में चिंताओं की रेखाएं उभर आयी थीं   ।

बाबा !   बताओ ,   सब ठीक तो है ना  !   

यशोदा  रो पडीं ..........बाबा !  कुछ तो बोलो  ।

हे बृजरानी !   बस एक ही उपाय रह गया है अब .............कि इस  बृज मण्डल की जो  सती हों   वो यहाँ पधारें ...........और  -

इतना कहकर   वो  साधू बाबा   कन्हैया  के पास गए .......और उनकी एक  घुँघराली लटें  खींचीं...........उस  बाल को  जोड़ जोड़ के  लम्बा किया ..........सामनें यमुना में  गए     यमुना के इस पार से  उस पार  कन्हैया के केश को  बांध दिया ............

फिर बृजरानी से बोले ........एक कोई कलश होगा  ? 

हाँ हाँ  है  बाबा !   यशोदा नें कलश मंगवाया ...............

बड़ा विचित्र बाबा था ये ........एक सुवर्ण की कील निकाली ......और  उस घड़े में   शत  छिद्र  कर दिए ।......फिर  लंबी साँस ली ......बृजरानी !    अब तैयार हो गया ........इस कलश को उठाकर  इस केश के पतले तार पर चलना है .........मध्य में यमुना जल भरते हुये    मेरे पास तक कलश को  ले आना है .......पर  ये कार्य कोई महान् सती ही कर सकती है.. ....पूर्ण सतीत्व होना चाहिये उसमें.....पतिव्रता ......बाबा मुस्कुराये   ।

पिटवा दिया  ढिंढोरा   पूरे बृजमण्डल में,   बृजपति नन्द जी नें......

" कि बृज की आदरणीय सतियों को निमन्त्रण है.........वे पधारें  और मेरे पुत्र को जीवन दान दें.......बड़ी विनम्र प्रार्थना थी  मुखिया जी की   ।

आईँ   सतियाँ .........बड़ी बड़ी पतिव्रतायें ........पर  उस पतले से केश के बाल में  पैर रखकर  छिद्र वाले  कलश में जल भरना .......अधिकतर सब डर गयीं ..........किसी नें तो  प्रयास ही नही  किया,  किसी नें किया भी  तो वो  असफल रहीं  ।

ये सब देखकर  बृजरानी यशोदा से रहा नही गया .........."किसी से ये कार्य नही हो रहा है ......कलशा लेकर  स्वयं ही  चल पडीं यशोदा .......मैं भी सती हूँ........मैं लाऊँगी जल ........आवेश में आगयीं थीं ।

पर आपके लानें से नही होगा.........उन बाबा नें साफ मना कर दिया ।

क्या मैं सती नही हूँ  ?    यशोदा को  आवेश था  ।

नही माँ !  आप परम सती हैं...इसमें किसी को सन्देह नही है  ......पर   आप  इनकी माता हैं  इसलिये  आपके द्वारा लाया गया जल  आपके पुत्र के लिये  उपचारक सिद्ध  नही होगा ।

ओह !      फिर विलाप करनें लगीं   यशोदा  ।

"हमारे  बरसानें में  एक  बड़ी सिद्ध माता हैं"........बरसानें की एक  स्त्री  वहीँ थी .........वो सब देख रही थी.........तो उसनें कह दिया ......"जटिला"   नाम है उनका........बड़ी सती हैं........सिद्ध सती हैं ......और इतना ही नही   उनकी पुत्र वधू भी  परम सती हैं ।

बृजपति नें बात पहुँचाई बरसानें ............बरसानें  में  बात जैसे ही पहुँची........वहाँ तो  हल्ला हो गया.......जटिला  बुढ़िया  के पास सूचना गयी........वो बड़ी खुश .........

बृजपति के यहाँ   सतियों का बड़ा सम्मान हो रहा है ......आपको भी बुलाया गया है.......और आपकी बहू को भी  ।

तुनक कर बोली जटिला -  बृजपति के यहाँ क्या......सतियों का सम्मान  तो बड़े बड़े देवता   भी करते हैं .......अरे  तुमको क्या पता  तीनों देवताओं को अपनी गोद में खिलाया था  महासती नें .........तुम क्या जानों सतियों की महिमा को  ? 

अच्छा !   चलो  अब  दावत है  तुम्हारी नन्द गाँव,    अपनी बहु को भी ले लो .......बरसानें की अन्य महिलाओं नें कहा  जटिला से .......जटिला अपनी बहु को साथ में लेकर  चल पड़ी थी  नन्दगाँव  ।

ललिता सखी नें देख लिया.......क्या कारण  है,    वहाँ नन्द गांव में  कि  इस जटिला को बुलाया गया है.......चलूँ  !  देखूँ मैं  !

इतना कहकर  चल पड़ी ललिता सखी भी  पीछे पीछे  जटिला के   ।

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हजारों लोग  खड़े हैं  यमुना के किनारे.............जटिला गयी वहाँ .........उसकी बहू भी साथ में थी..........

जटिला को  बाबा नें समझाया ........कन्हैया    बीमार है .........इसका इलाज यही है  कि  कोई सती स्त्री  अगर इस छिद्र वाले कलश में,   केश में पैर रखकर   यमुना से जल भर लाये  तो  कन्हैया ठीक हो जाएगा ।

बस इतनी सी बात..........इस कार्य के लिये तो मेरी बहू  ही बहुत है ।

अहंकार में बोली जटिला  ।

बहू नें डरते हुये  पूछा ......सासू माँ !   कुछ होगा तो नही  ? 

पगली डरती है .........हम चाहेँ  तो    काल की गति को रोक दें .......जटिला  ये बात  सबको सुनानें के लिये जोर से बोली थी ।

सबनें तालियाँ बजाईं ..........उन बाबा नें भी  बजाई  ।

बहू गयी पहले ............पर ये क्या  ?     पैर रखते ही  उस केश में ....... केश टूट गया  और  धड़ाम से यमुना में गिरी  वो जटिला की बहू ।

सब हँसीं .........बाबा भी हँसें ............पर जटिला झेंप गयी  ।

राधा का संग करती है क्या ?        जटिला नें  अपनी बहू से कहा ।

नही सासू माँ !      

देख !  असती के संग से सतियाँ भी  गिर जाती हैं .....समझीं  ?

हाँ समझ गयी  सासू माँ ..........  ..सिर झुकाकर खड़ी रही बहू  ।

अब देखो !  मैं जाती हूँ ...........आकाश की ओर देखा जटिला नें .....फिर कुछ मन्त्र बुदबुदाई ................

लाओ ! कलश ........छिद्र वाले कलश को लिया ........पर जैसे ही  उस  केश  पर पैर रखा ........................

ओह !     ये भी गयी ........तो जटिला सती नही थी  ?     

ललिता सखी  देख कर हँसनें लगीं ...........

सबमें यही चर्चा शुरू हो गयी ..........कि जटिला में कोई सतीत्व नही है ।

अरे ! ये काम तो महासती  अनुसुइया से भी नही हो सकता........ऐसे काम कोई सतियों के लिये होते हैं  ?     जटिला झेंप कर बोलती रही ।

पर  अब सबकी दृष्टि  उन बाबा पर टिक गयी थी ............वो बाबा  धरती पर बैठ गए थे .....और कुछ आड़े टेढ़े रेखाएं खींचनें लगे थे ।

फिर  कुछ  हिसाब सा करनें लगे....आँखें मूंदकर  बोलते रहे कुछ कुछ ।

"आपके बृज में इतनी बड़ी सती शिरोमणि हैं   उनको अभी तक क्यों नही बुलवाया  ..........बाबा  अब कुछ क्रोधित से हो रहे थे ।

पर बाबा !   सब  सतियाँ तो यहीं हैं ............जो परम पवित्र हैं ......किसी अन्य पुरुष को देखती भी नहीं ...........सब यहीं हैं ।

बृजरानी बोलती रहीं .......जटिला, सावित्री  अन्य सतियों को  वो दिखाती रहीं ..................

नही .....ये नही ...............बरसाना कहाँ है   ?     

बाबा  आँखें बन्दकर के बोले .....मेरी विद्या बता रही है  कि बरसानें में कोई महान सती है ................

मैं ही हूँ   बरसानें की महान सती ........जटिला फिर आगे आई  ।

अरे !  तुम नही ......तुम काहे की सती  ?

   बाबा नें हटा दिया सामनें से जटिला को  ।

बरसानें की  राधा .....हाँ  यही नाम है   श्रीराधा  ......आँखें बन्दकर के  बाबा  बड़े आनन्द से बोले थे  ..............

ललिता सखी नें सुना.........बृजपति नें ललिता की ओर देखा .....बृजरानी नें भी  .......तब  ललिता मुस्कुराईं  और दौड़ी  बरसानें की ओर  ।

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लाडिली ! लाडिली ! लाडिली  !   

मोर कुटी में बैठीं थीं  श्रीराधा रानी ......ललिता सखी दौड़ी गयीं वहाँ ।

क्या बात है  ललिते   !    इतनी तेज़ दौड़  ?    क्यों  ?

आपको बुलाया है नन्दगाँव में ..........अभी चलिये  लाडिली  !

ललिता हाथ पकड़ कर बोली   ।

पर क्यों ?  क्या हुआ   नन्दगाँव में  ?    श्रीजी नें पूछा  ।

श्याम सुन्दर मूर्छित हैं ......दो दिन से मूर्छित हैं.........ललिता बोलती गयी ........पर इससे आगे  श्रीराधा रानी नें सुना ही नही .....वो  तो नन्दगाँव की ओर चल दीं .....पीछे पीछे  ललिता सखी दौड़ रही थीं ।

क्या हुआ  इनको ?    क्या हुआ   मैया ?    

सीधे कन्हैया के पास ही गयीं  श्रीराधा रानी ........कन्हैया को छूआ .........फिर बृजरानी से पूछनें लगीं  ।

"कोई सती अगर   इस सौ छिद्र वाले कलश में जल भरकर,   इस केश के पतले तन्तु से   चलकर,   कलश में जल भरके ले आये .....और उस जल को  कन्हैया के  मुँह में डाल दिया जाए ......तो ............

वो बाबा बोलते रहे........पर श्रीराधा रानी नें   उन बाबा के हाथों से कलश लिया......और  केश के उन पतले से तन्तु  पर चलते हुए  मध्य यमुना  में  उस कलश में    जल भर लिया ......और लेकर चली आईँ .....

स्वयं आगे बढ़कर   श्याम सुन्दर के मुख में ,   कलश के जल का छींटा दिया ......और जैसे ही छींटा पड़ा.....उठकर बैठ गए  श्याम सुन्दर ।

अपनें गले से लगा लिया था  श्रीराधा रानी नें  श्याम सुन्दर को  ।

जटिला का मुख देखनें जैसा था अब ..........चारों ओर से यही आवाज आरही थी ......"सती शिरोमणि श्रीराधा रानी की - जय जय ।

पर  इन सब से क्या लेना देना  श्रीराधा को ....
...वो तो चल दीं थीं  बरसानें की ओर ।

पर  ये क्या  !      जो कल तक कुलटा,  व्यभिचारिणी कहते थकती नही थी  वही जटिला   अब   स्वयं  उन श्रीराधा रानी के चरण धूल को  अपनें माथे से लगा रही थी......उसकी बहू.....अन्य समस्त बृज की सतीयाँ भी    श्रीराधा रानी के चरण धूल से अपनें आप को पवित्र किये जा रही थीं   ।

पता है   हे वज्रनाभ !     वो बाबा कौन थे  ?  

महर्षि नें हँसते हुये कहा ........वो बाबा स्वयं भगवान शंकर थे ......

उन्होंने भी   श्रीराधा रानी के चरण रज को  अपने माथे से लगाया था  ।

आकाश में समस्त सतियाँ  इकट्ठी हो गयी थीं.....अनुसुइया, अरुंधती , सावित्री इत्यादि  सब    श्रीराधा रानी के ऊपर  फूल बरसा रही थीं  ।

शेष चरित्र कल

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