आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 47 )
पद कमल धोई चढ़ाई नाँव .....
( रामचरितमानस )
***कल से आगे का चरित्र -
मैं वैदेही !
मुझे गंगा के किनारे बहुत आनन्द आरहा था ..........क्यों की उस अद्भुत भक्त नें मेरे प्रभु श्रीराम को खूब हँसाया ।
वाह ! एक केवट दूसरे केवट से माँग रहा है ......केवट बोला ।
तुम किसे केवट कह रहे हो ?
लक्ष्मण नें गम्भीर होकर पूछा था ।
आप मुझे डरा रहे हैं ?
केवट नें भी लक्ष्मण से कह दिया ।
आप मुझे मार भी दो ना ......तो भी मैं बिना इनके पाँव धोये, इन्हें ले जाऊँगा नही............चाहे आप मुझे मार दो...............
तुम कुछ भी बोल रहे हो डर नही लगता तुम्हे ?
लक्ष्मण को आश्चर्य हो रहा था ।
क्यों डर ? अरे ! लक्ष्मण भैया ! दुनिया को पार लगानें वाला स्वयं मुझ से पार लगानें की याचना कर रहा है .....तो मुझे क्या डर ?
और केवट हम दोनों हैं ..........आप नही ।
लक्ष्मण जी ! ये केवट हैं.. ......ये भव सागर के केवट हैं ..........और मैं इस गंगा का केवट हूँ .......।
लक्ष्मण जी ! जैसे भवसागर से पार ये उसको ही ले जाते हैं ......जो पार जानें के नियमों का पालन करता है ......जैसे - अन्तःकरण शुद्ध हो ...ध्यान करो.....भजन करो....साधना के नियमों का पालन करो ।
ऐसे ही मेरी भी गंग पार ले जानें के कुछ नियम हैं ..........इन्हें भी आज उसका पालन करना ही होगा .....तभी आप लोग उस पा जा पाएंगे ।
वो विचित्र भक्त केवट बोले जा रहा था .......प्रभु मुस्कुरा रहे थे ।
अच्छा भाई ! तेरा नियम यही है ना ............कि चरण धोना मेरे ?
मेरे श्रीराम केवट बोले थे ।
देखा लक्ष्मण भैया ! ये कितनें समझदार हैं .........क्यों की ये भी केवट हैं ......और केवट केवट की भाषा समझता है ।
अच्छा भैया केवट ! जल लेकर आओ, और चरण मेरे धोलो ।
आज्ञा मिल गयी ............केवट तो हर्ष - विह्वल लगभग नाचता हुआ दौड़ा था ....अपनें परिवारी जनों को बुलानें के लिये ।
श्रीराम नें निषादराज की और देखा ................
भगवन् ! ये पागल है केवट ........निषाद राज नें कहा ।
श्रीराम मुस्कुराये .....मुझे "पागल" लोग ही पसन्द हैं ..............।
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कुछ देर बाद ही लोगों का हुजूम सा दिखाई दिया दूर ..............
आगे आगे केवट चल रहा था ......उसके हाथों में लकड़ी का कठौता था ....जिसमें पानी भर कर लाया था ।
उसके पीछे ......उसका पूरा परिवार नाचते गाते आरहा था ।
वो दृश्य बड़ा सुन्दर था .............मै तो गदगद् हो रही थी ।
केवट नें श्रीराम को एक उच्च स्थान पर विराजमान किया .........
कठौता में चरण रख दिए प्रभु नें .............केवट चरण धोनें लगा ।
मल मल कर चरण धो रहा है ........उसके नेत्रों से अश्रु जल प्रवाहित हो रहे हैं .................उसे रोमांच होनें लगा था ।
वो केवट मात्र चरण नही धो रहा था .........केवट चरणों को पकड़ कर .....उनमें जो चिन्ह थे उनको देखनें लग गया था ।
कमल, अपनी पत्नी को कहता है .......देख दर्शन कर ....ये चिन्ह भगवान के चरणों में ही होते हैं ............चक्र, गदा , शंख, कलश, ध्वजा ... ....स्वस्तिक .........इन चिन्हों को देखता है .........और अपनें परिवार को दिखता है .........अपनें बच्चे को बुलाकर कहता है ......देख ये हैं चिन्ह अंकुश के ..........अंकुश के चिन्ह का ध्यान करनें से मन वश में होता है ................।
अब हो गया ? छोडो मेरे चरण !
श्रीराम को अब थोड़ी झुंझलाहट सी होनें लगी थी ।
चरण पकड़ कर ......सब लोगों को एक एक चिन्ह बता रहा है .....हद्द है ।
क्या कर रहे हो केवट ? धो लिए ना चरण ?
केवट तुरन्त बोला ......आपको दिक्कत क्या है ?
आपसे मैं उतराई तो लूंगा नही .........फिर थोड़ी देर और चरण धो लूंगा तो आपका क्या बिगड़ जाएगा ?
केवट ! बिगड़नें की बात नही है ..........पर तुम मेरे पांव को हाथों में लेकर लोगों को दिखा रहे हो ना .......इससे मुझे गिरनें का डर है ।
क्या ? आपको गिरनें का डर है ?
श्रीराम की बातें सुनकर केवट नें जबाब दिया था ...............
आप को भी गिरनें का डर लगता है ?
अरे ! नाथ ! मै तो सोचता था .....ईश्वर को गिरनें का कोई डर नही !
फिर आपको कैसे डर लग सकता है ?
हे नाथ ! हाथ जोड़कर खड़ा हो गया केवट ...............नाथ ! अगर आपको गिरनें का डर है ......तो मेरे सिर में हाथ रख दो ..........इससे न आप गिरोगे .......और न मै गिरूँगा ....केवट नें सजल नयनों से कहा ।
आकाश से देवों नें पुष्प वृष्टि करनी प्रारम्भ कर दी थी ........
धन्य धन्य केवट ! यही शब्द गूँज रहे थे आकाश से ।
दुन्दुभियाँ बज रही थीं जब केवट चरण धो रहा था मेरे श्रीराम के ।
पुरुष सूक्त का सस्वर पाठ शुरू कर दिया था ऋषियों नें ..........
पर केवट का ध्यान इन सब में नही था ..........केवट का ध्यान तो मात्र प्रभु श्रीराम के चरण कमल में ही था ।
बहुत देर तक धोता रहा केवट प्रभु श्रीराम के चरणों को .....मल मल कर धोता रहा ...........कभी कभी तो धोना भी भूल जाता ......और चरणों को अपनें सिर में रख कर। ध्यान मग्न हो जाता है ।
धन्य हो गया था आज केवट .............
सच है ...........श्रीराम जाति नही देखते ..........कुल नही देखते .....न विद्या देखते हैं .............मेरे श्रीराम तो सिर्फ सिर्फ प्रेम देखते हैं ।
इस अटपटे भक्त के बारे में और क्या लिखूँ !
शेष चरित्र कल ........
Harisharan
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