आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 37 )
तापस भेष विशेष उदासी....
( रामचरितमानस )
** कल से आगे का चरित्र -
मैं वैदेही !
वो बेचारी उर्मिला ! वो सीधी सादी माँ सुमित्रा !
सीधे नीचे सिर करके अपनी माता सुमित्रा के महल में गए थे लक्ष्मण ।
सिर नीचे इसलिये कि कहीं कोई कुछ पूछ न ले......की क्या हुआ है इस रघुकुल को ? कौन सी ऐसी घटना घट गयी जिसके कारण आज अनाथ की स्थिति में ये अवध पहुँच गया है ।
तब तक सिर नीचे ही करके चलते रहे थे लक्ष्मण जब तक माँ सुमित्रा का महल नही आगया ।
माँ !
..........सिर ऊपर करके अपनी माता सुमित्रा को देखा था ।
ओह ! मेरे लखन ! अरे ! देखो ना ! मैं तो आरती पूजा इनकी थाली सजाकर बैठी हूँ .......कि मेरा राम इधर से ही जाएगा ......पर बिलम्ब हो गया ना ! क्या हुआ ? बेचारी भोली माँ कुछ नही जानती थी की इस रघुकुल में क्या से क्या होगया है !
माँ ! चरण पकड़ लिए थे लक्ष्मण नें ।
माँ ! सब कुछ खतम हो गया ...........सब कुछ !
इतना कहते हुए हिलकियों से रो पड़े थे लक्ष्मण ।
अरे ! ऐसा क्या हुआ ? बोल ना ! और तुझे रोते हुए मैने आज तक नही देखा , तू रो रहा है ? बता क्या हुआ ?
मुझे घबराहट हो रही है लक्ष्मण ! जल्दी बता ...सुमित्रा माँ नें पूछा था ।
माँ ! कैकेई नें दो वरदान मांग लिए हैं .....एक भरत को राज्य और दूसरा भैया राम को चौदह वर्ष का वनवास !
मुझे ये सारी बातें चित्रकूट में लक्ष्मण नें बताईँ थीं ।
चित्रकूट में लक्ष्मण नें मुझे उस स्थिति का वर्णन करके बताया था ।
क्या स्थिति थी वो अवध की ..............।
*******************************************************
माँ सुमित्रा को कुछ देर होश ही न रहा ..............उनके शरीर से जैसे किसी नें सारा रक्त ही निकाल दिया हो ............मस्तक असह्य पीड़ा से ग्रस्त हो गया था ।
माँ ! ऐसे हिम्मत मत हारो । लक्ष्मण नें अपनी माँ को समझाया ।
पुत्र ! मुझ में हिम्मत नही है .............नही तो मेरी अभी यही इच्छा है कि मै अपनी जीजी कौशल्या के पास जाऊँ .........जीजी पर क्या बीत रही होगी .......!
नही नही ........जीजी तो हिम्मत वाली हैं ...........पर बेचारी सीता !
उस पर क्या बीत रही होगी !
नही नही ........सीता बहू पर भी क्या बीतेगी !
ओह ! वो कैकेई ! क्या किया उन्होंने ऐसा ! क्यों किया ?
भरत जब आएगा ........तब कैकेई क्या कहेगी उस भरत से ।
वो त्याग देगा उसे .............हिलकियों से रो पडीं थीं सुमित्रा माँ ।
जिद्दी हैं वो कैकेई पहले से ही ............पर ऐसा भी क्या जिद्द कि अपनें आपको जीवन भर के लिए कलंकिनी बना लिया ।
लक्ष्मण ! सब ठीक हो जाएगा ..................एक दिन देखना ।
पर बेचारी कैकेई ? उसका क्या होगा ?
भरत जीवनभर उसे माँ नही कहेगा ..........मै जानती हूँ भरत को ।
वो तड़फती रहेगी ........अपनें भरत के मुँह से "माँ" सुननें के लिये .....पर नही ...........हाय ! कैकेई क्या किया ऐसा ?
माँ सुमित्रा की दूरदृष्टि नें सब कुछ देख लिया था कि आगे क्या होनें वाला है ।
अपनें अश्रु पोंछे सुमित्रा माँ नें ................
पुत्र लक्ष्मण ! पर तुम यहाँ क्यों आये हो ? बोलो ?
आपसे आज्ञा लेनें के लिये माँ ?
मै जा रहा हूँ श्रीराम भैया के साथ वन में ।
मै माँ ? हँसी माँ सुमित्रा.....आज के बाद तेरी माँ तो वैदेही है पुत्र !
तेरे पिता श्रीराम हैं ..............वैसे भी बड़ा भाई पिता के समान ही होता है ...और भाभी माँ के समान ।
पुत्र ! जा ! जा ! ..............इससे बड़ा सौभाग्य तेरा और कुछ हो नही सकता ............सुमित्रा का ये कोख धन्य हो जायेगा अगर श्री राम भैया की सेवा में तू पूर्ण तन पूर्ण मन से लग गया तो !
तभी ..................चुप हो गयीं थीं माँ सुमित्रा ।
क्यों की पीछे खड़ी थी और सुबुक रही थी बेचारी उर्मिला ।
****************************************************
ना ! ना ! रोना नही........सौमित्र लक्ष्मण ने उर्मिला के अश्रु पोंछे ।
लक्ष्मण की पत्नी हो तुम .......रोना शोभा नही देता तुम्हे ।
तो मैं क्या करूँ नाथ !
चरणों में गिर गयी थी उर्मिला ।
नही ऐसे विलाप करना उचित नही है उर्मिले !
उठाया लक्ष्मण नें ...उर्मिला को ।
गम्भीर होकर बोले ............वचन दो एक अपनें इस पति को ।
पहली बार और अंतिम बार मांग रहा हूँ उर्मिले ! वचन दोगी ?
माँगो नाथ ! जो माँगोगे दे दूंगी ...........।
चौदह वर्ष तक मेरी उर्मिला रोयेगी नही !
ओह ! ये क्या माँग लिया .................चुप हो गयी बेचारी उर्मिला ।
क्यों नही दे सकती तुम उर्मिले !
इतना कहकर चलनें को उद्यत हुए ही थे लक्ष्मण कि ........आगे बढ़कर उर्मिला नें अपनें आँसू पोंछ लिए ..............
नही रोयेगी आपकी ये उर्मिला ! चौदह वर्ष तक नही रोयेगी .....मै वचन देती हूँ आपको ...........पर नाथ ! मुझ से नाराज मत होइये ।
मेरे सब कुछ आप हैं ........आप सिर्फ आप !
इतना कहनें के बाद भी आँसू पी गयी थी उर्मिला ।
उर्मिले ! मुझे जाना है..........इतना कहकर चल पड़े थे लक्ष्मण ।
देखती रही थी वो मेरी छोटी बहन उर्मिला ..................
कितनी चंचल....कितनी नटखट.....मेरी बहन उर्मिला.....पर आज उसकी ये स्थिति थी कि वो रो भी नही सकती थी !
ओह दैव ! क्या कर दिया तुमनें !
शेष चरित्र कल ...............
Harisharan
0 Comments