आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 36 )
सुनु जननी सोई सुत बड़ भागी,
जो पितु मातु वचन अनुरागी ।
( रामचरितमानस )
***कल से आगे का चरित्र -
मैं वैदेही !
सम रहना कोई मेरे श्रीराम से सीखे .........सच कहा था कैकेई माता नें .....किस मिट्टी के बने हो राम !
राज्याभिषेक होनें वाला था.....पर कोई प्रसन्नता नही ........दूसरे ही क्षण सब कुछ बदल गया ..........वनवास जाना पड़ रहा है .......पर उदासी नही है .......वही स्मित हास्य ..........शान्त ।
माँ ! धन्यवाद आपका , आपनें इस राम को वनवास देकर कितना बड़ा काम किया है .......आपको अभी पता नही है ।
माँ ! मैं जाता हूँ.................मुझे वनवास की तैयारी भी करनी है ।
इतना कहकर श्री राम कैकेई महारानी के महल से निकल गए थे .......
मैं छत्र-चँवर लेकर जब श्रीराम के पीछे चला ............तो माँ ! मुझे श्रीराम नें मुस्कुराकर मना कर दिया ..............अब मैं वनवासी हूँ ।
सुमन्त्र के पुत्र मुझे ये सब बातें बता रहे थे ।
मेरे पिता सुमन्त्र जी रथ लेकर बाहर खड़े थे ...........हे राघव ! रथ में बैठिये ................नही तात सुमन्त्र ! अब रथ भी नही ......वनवासी रथ में क्यों बैठेगा ! राम अब वनवासी हो गया है ..........।
इतना कहकर श्रीराम पैदल ही चल पड़े हैं भाभी माँ !
मैने सुमन्त्र पुत्र की बातें सुनीं .......मेरा हृदय काँप गया ............
सीता ! कहीं तुमको छोड़ दिया अवध में तो ?
सीता ! कहीं तुमको आज्ञा दे दी कि माता पिता की सेवा करो ...और यहीं रहो .....तब ?
मैं दौड़ी माँ कौशल्या के पास.........क्यों की सुमन्त्र पुत्र नें मुझे बताया था कि श्रीराम पैदल पैदल कौशल्या जी के महल में ही जा रहे हैं ।
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श्रीराम पैदल आरहे हैं !
...दास दासियों में ये बात फ़ैल गयी ......नही नही, दास दासियों में ही नही ......नगर में भी ये बात हवा की तरह उड़ रही थी .......।
पर कौशल्या माँ तो हवन में लगी थीं .............मै गयी मैने प्रणाम किया .........माँ मुस्कुराईं .........मुझे बैठनें के लिए कहा ।
मैने अपनें श्रीराम के लिए ये यज्ञ रखा था ..............मेरे राम का राज्याभिषेक अच्छे से हो जाए इसलिये मैने ये यज्ञ रखा ।
मै कुछ नही बोली ..................मैं सुनती रही ।
ये भोली "राम जननी" अवध में घटी घटना से अभी तक अनभिज्ञ हैं ।
श्रीराम आये हैं .......पैदल आये हैं ..............दासी ने सूचना दी माता कौशल्या को ।
क्या ? इस समय राम मेरे महल में ?
ये कहते हुए मेरी और देखा था माता कौशल्या जी नें ।
फिर उठीं ................और मुझे लेकर बाहर आयीं ।
अरे राम ! तुम यहाँ ? तुमनें कपड़े भी नही बदले ?
माँ घबड़ाई हुयी थीं ।
महाराज मुझ पर गुस्सा उतारेंगें .....कहेंगें तुमनें अभी तक मेरे युवराज को तैयार नही किया ! और राम ! सूर्योदय भी हो चुका है .......तुम तैयार तो हो जाओ । माँ .....वो भोली भाली माँ.........उन्हें क्या पता था कि अवध में जो कुछ घटित हुआ है.......वो अप्रत्याशित था ।
माँ ! माँ .......तुम बैठो .................मेरे श्रीराम नें माता कौशल्या को बिठाया .......फिर उनके चरणों में बैठकर स्वयं बोले ...........
माँ ! मेरे पिता बहुत बड़े दयालु हैं ................
हाँ पुत्र ! मुझे पता है ...........
माँ ! माँ ! पता है मेरे पिता जी नें मुझे एक विशाल राज्य देनें का वचन दिया है ।
मै समझी नही राम ! गम्भीर हो गयीं थीं माता कौशल्या ।
देखो माँ ! बात ये है कि मेरे पिता जी माँ कैकेई के महल में हैं .....मुझे उन्होंने अपनें पास बुलाया था अभी ।
और मुझ से कहनें लगे ........राम ! तुम्हारे जैसे विशाल व्यक्तित्व के लिए ये अवध का राज्य छोटा नही हो जाएगा .?
मै क्या कहता माँ ! मै कुछ नही बोला ।
तो उन्होंने मुझे कहा ........हे राम ! तुम वन का राज्य लेलो
विशाल वन का राज्य ! माँ ! सच कहा पिता जी नें ...........मेरे लिए ये अवध का राज्य छोटा हो जाएगा ............है ना माँ ?
कौशल्या माता अपलक देखती रहीं श्रीराम को ।
क्या कहना चाहता है , स्पष्ट कह राम !
माँ ! मुझे वनवास में जाना पड़ेगा ।
क्या ? क्या !
मूर्छित ही हो गयीं थीं ये सुनते ही माता कौशल्या ।
नही .............तू वनवास में नही जाएगा राम !
जब मूर्च्छा टूटी माँ कौशल्या की ........और सारी बात पता चली .........
तब बोलीं थीं माता ।
तभी मेरे बगल में आकर खड़े हो गए थे लक्ष्मण ।
मैने उनकी और देखा .........लाल आँखें हो गयी थीं उनकी, और लम्बी लम्बी साँसें चल रही थीं ।
नही जाएगा तू वनवास ।
दो टूक कह दिया था कौशल्या माँ नें ।
यही दिन दिखाना था तो इस कौशल्या को वन्ध्या ही बना देता विधाता.........क्यों पुत्र दिया इस अभागन कौशल्या को ।
अत्यंत दारुण है नियति का विधान !
पर क्या करें...........सहना तो पड़ेगा ही ना माँ ! श्रीराम नें कहा ।
शून्य में तांकनें लगीं थीं कौशल्या माता ................कुछ समझ में नही आरहा था उनके ।
पर पता नही एकाएक क्या हुआ उन्हें..........
राम ! चल मेरे साथ ......चल ! मैं जाऊँगी तेरे पिता जी के पास ....और जाकर रोऊँगी.......उनके चरणों में अपना सिर रखकर कहूँगी ......मेरे पुत्र राम से क्या अपराध हो गया ।
मेरा राम तो कभी अपनें शत्रु का भी हृदय नही तोड़ता ......फिर ?
नही नही .........मेरे राम का तो कोई शत्रु ही नही है ...........
फिर ऐसे राम से क्या अपराध हो गया ................राम ! चल मेरे साथ चल .............मैं तेरे पिता जी से बात करूंगी ........हाँ ।
मै दूर खड़ी आँसू बहा रही थी ........कितनी क्रूरता की है नियति नें !
उफ़ !
माँ ! विचार करो .......भरत राजा बनेगा .........योग्य है भरत !
और रही मेरी बात , तो माँ ! बस चौदह वर्ष की तो बात है ना !
ये वरदान कैकेई नें माँगा है ?
लाल आँखें हो गयीं माता कौशल्या की ।
हाँ माँ ! सिर झुकाकर श्रीराम नें कहा ।
धड़ाम से धरती पर गिर पड़ी थीं फिर माता कौशल्या ।
मैने ही सम्भाला ..........मै माँ कौशल्या को जल पिला रही थी .....
तभी मेरे श्री राम पास आये मेरे ....................
सीते ! मुझे तुम पर पूरा विश्वास है ...............तुम माता पिता की सेवा करना ...........और हाँ यहाँ मन न लगे तो जनकपुर हो आना ।
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ये क्या कह दिया था मेरे नाथ नें !
आपकी आज्ञा मैने आज तक टाली नही है ............न आगे टालूंगी ।
हाँ आप अगर आज्ञा ही दोगे कि सीते ! तुम्हे यहीं रहना है ......
तो रहेगी जानकी ......पर जानकी रहेगी या उसका शरीर मात्र रहेगा ....मै कह नही सकती ।
ये बात मैने बड़ी हिम्मत से कही थी .................मै जब कह रही थी तब मेरा शरीर काँप रहा था .........मेरी आँखें शून्य हो गयीं थीं ।
अज्ञात डर मुझे खाये जा रहा था .............और अज्ञात डर ये ......कि कहीं श्रीराम नें मुझे अवध में ही रहनें की आज्ञा स्पष्टता से दे दी तो ?
मुझे अपनें साथ नही ले गए तो ?
ये सीता सरजू में कूदकर अपना शरीर त्याग देगी ।
मैने भी कह दिया ।
पीछे मुड़े श्री राम .............लक्ष्मण ! तुम अवध को सम्भालना ।
मै आपको नही छोड़ सकता ..............लक्ष्मण भी स्पष्ट ही बोले ।
चाहे ये लक्ष्मण रहे या मरे......पर आपको ये लक्ष्मण नही छोड़ेगा ।
आप अगर ज्यादा जिद्द करोगे ........तो आपको छोड़ देगा सरजू के उस पार तक .......पर लक्ष्मण लौट के अवध नही आएगा ...........
सरजू में ही जल समाधि ले लेगा ।
तुम पागल हो क्या ? श्रीराम चिल्लाये ।
हाँ .........मै पागल हो गया हूँ ..............आपके ये कोमल चरण काँटों में घूमेंगे .........ये सोच कर ये लक्ष्मण पागल हो गया है ।
कैकेई की दुष्टता को सुनकर ये लक्ष्मण पागल हो गया है ।
स्त्रैण दशरथ की स्थिति देखकर ये लक्ष्मण पागल हो गया है ।
लक्ष्मण ! जोर से चिल्लाये मेरे श्री राम ।
पिता जी नें बारे में ऐसा मत बोल.........वो बहुत महान हैं लक्ष्मण !
माता कैकेई का भी कोई दोष नही हैं लक्ष्मण !
किसी का कोई दोष नही है ।
कौशल्या माता को होश आ गया था .............
मैने जल पिलाया उन्हें फिर ...............
राम ! तुमनें सही कहा है ............तुम्हारे पिता जी किसी धर्म संकट में फंस गए हैं...........कुछ सोचनें लगीं थीं कौशल्या जी ।
पुत्र ! सीता को अपनें साथ ले जाओ ।
अपनें साथ ले जाओ .............और लक्ष्मण को भी ले जा राम !
पर लक्ष्मण ! अपनी माता सुमित्रा और पत्नी उर्मिला से आज्ञा तो ले आओ.........जाओ .............।
इतना सुनते ही लक्ष्मण चल पड़े थे....तेज चाल से ...अपनी माता सुमित्रा और उर्मिला के पास ................।
शेष चरित्र कल .........
Harisharan
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