आज के विचार
( "साधू स्वभाव" - एक कहानी )
सन्तपरम हित कारी जगत में ....
( कबीरदास )
परोपकारी थे ये महात्मा.........निस्वार्थ सेवा ही इनका जीवन था ।
बचपन से ही पूर्वजन्म के संस्कार लेकर ही ये जन्में थे ।
बचपन में ये महात्मा ...........स्वयं भूखे रह जाते ........और अपनें पास का जो भी होता .....मिठाई या पैसा ये सब दुःखी लोगों में बाँट देते .....किसी को दुःखी देखना.... इनको अच्छा नही लगता था ।
बात एक दिन या दो दिन की नही थी ............बात थी इनके हृदय में उमड़ रहे करुणा की .............बेचारे मानव ! इनका हृदय रो देता ।
ओह ! उस भीषण गर्मी में ................दूर दूरतक कोई जलाशय नही था ....कहीं कोई पानी की भी व्यवस्था नही थी ..........तब इनका कमण्डलु भरा हुआ था ...................।
एक वृक्ष के नीचे बैठ गए थे सुस्तानें के लिए .............
इनका भी गला सूख रहा था ....कमण्डलु उठाया ही था इन्होनें कि ....
बाबा ! मर जाऊँगा ......थोडा जल पिला दो .............उस गरीब आदमी के साथ एक उसका बालक भी था ।
बाबा के नेत्रों से अश्रु बहनें लगे .....................
कमण्डलु उस गरीब आदमी की तरफ खिसका दिया बाबा ने ..........
पीयो वत्स ! पीयो !
बड़े आनन्द से बोले ...................गटागट पानी पी गया था .......वो गरीब आदमी ..............कितना स्वार्थी था .......पूरा कमण्डलु पी गया .........थोडा बचा था वो भी अपनें बच्चे को पिला दिया ।
खाली कमण्डलु करके बाबा की ओर खिसका दिया ............
चल दिया बाबा के पास से........न धन्यवाद , न कुछ , न कुछ ।
वैसे बाबा को तो आनन्द इतनें में ही आगया था .............कि चलो किसी प्यासे नें भर पेट जल तो पीया ।
पर ऐसी बातें आजकल की युवा जगत समझेगी ?
शाश्वत इस घटना का उल्लेख करना भी नही भूलता कि ..........
एक दिन तो हद्द ! ......यमुना जी में बैठे बैठे भजन कर रहे थे यही महात्मा जी ............तभी महात्मा जी उछले ..............शाश्वत कहता है ...मैने सोचा देखूँ तो हुआ क्या ?
एक बिच्छु बह रहा था ........उसे ही उठाकर किनारे से रख रहे थे ।
बेचारा बह जाएगा ................पर बिच्छु तो बिच्छु ...महात्मा जी के हाथों में काट कर फिर बहनें लगा था .......
पर अजीब हैं ये महात्मा भी .......फिर उसी बिच्छु को बाहर लानें के लिए गए जमुना जल में ..................
क्यों कर रहे हो ये सब महात्मन् !
शाश्वत के इस प्रश्न का उत्तर ऐसे दिया था उन महात्मा जी नें ।
बेचारा दुःखी है.......बह रहा है........कुछ दूर जाकर वो मर जायेगा ।
ओह ! कितनी करुणा भरी थी ...........कूट कूट के ।
पर याद रहे ..............ये बिच्छु है .......चाहे कितनी दया मया दिखाओ ......वो तो काटेगा ही ..............महात्मा जी ! ये संसार है .....करुणा लाख दिखाओ .........दया लाख दिखाओ .....पर ।
सबका अपना अपना काम है ................बिच्छु का काम है डंक मारना .....और मेरा काम है ............करुणा करना ....दया करना ।
जब बिच्छु अपना काम नही छोड़ रहा ...........तो एक साधू होकर मै कैसे दया करना छोड़ दूँ .............।
वो महात्मा जी चले गए थे .............बिच्छु को जल से निकालकर ही दम लिया था ..........थे ना अजीब महात्मा !
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मन्त्र सिद्धि करनें के लिए कहा .....इनके गुरुदेव ने ।
बस फिर क्या था........पीपल वृक्ष के नीचे इन्होनें तप करना शुरू कर दिया .........गुरुदेव नें कहा था .....वत्स ! सात्विक देव आयेंगें तुम्हे दर्शन देनें ........और हाँ ...........वरदान माँगनें के लिए भी कहेंगें ........कुछ मत माँगना .........क्यों की माँगनें से .......न माँगना अच्छा है .......न माँगनें से ........देव ही हमारे पीछे पड़े रहते हैं ।
ये सारी बातें मन्त्र सिद्धि के लिए देते हुए गुरुदेव नें सावधान किया था ।
मन्त्र सबीज था ............गुरुदेव नें सबीज करके ही मन्त्र प्रदान किया था .............मन्त्र के जाप करते ही अन्तःकरण शुद्ध हो गया ।
सात्विकता तो थी ही ......पर यही सात्विकता घनीभूत हो गयी थी मन्त्र सिद्धि के प्रभाव से ।
और उसी सात्विकता के घनीभूत होनें के कारण .............देव का प्रकट होजाना भी स्वाभाविक ही था .........तो प्रकट हो गए एक देवता ।
वरं ब्रूहि.............................देवता नें कहा ।
पहले तो उन महात्मा जी नें हाथ जोड़कर प्रणाम किया .........उन सात्विक देवता को ...........
"वरं ब्रूहि" देवता को जल्दी थी .................इसलिये फिर से बोला वरदान माँगों . .........।
यही चाहिये भगवन् ! करुणा से पूरित थे इनके नयन ........इनकी वाणी करुणा से भरी हुयी थी ।
यही चाहिए भगवन् ! कि मेरे शरीर का एक बून्द खून भी लोगों के दुःखों को दूर कर दे .............
जिससे ये वरदान माँगा था ..........उन देवता के नेत्र सजल हो गए थे .....ऐसा वरदान सुनकर ।
आज तक कितनों नें वरदान माँगे हैं ..................पर ऐसा वरदान कभी किसी नें माँगा हो ....याद नही है ....देवता को भी ।
तथास्तु ! ...................यही कहना जानते हैं ये देवता लोग ............और इन महात्मा जी को प्रणाम करके अंतर्ध्यान हो गए ।
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मै बहुत दुःखी हूँ ..........धन नही है ..........क्या करूँ ?
वो आदमी रोनें लगा था ......महात्मा जी के चरणों में सिर पटकनें लगा था ।
कोई बात नही वत्स ! मेरे शरीर से एक बून्द रक्त निकाल लो .........
इससे क्या होगा ? उस आदमी नें पूछा ।
तुम मेरे उस रक्त के बून्द को तिजोरी में रख देना ...........उसके प्रभाव से ....तुम्हारे घर में धन की कमी नही होगी । महात्मा जी नें बोल दिया ।
उस आदमी को अजीब लगा ........इनके रक्त से ?
पर महात्मा नें कहा है .......क्या जाता है खून ही तो निकालना है ....
एक काँटा लिया ......चुभो दिया .........रक्त निकला .............
महात्मा जी बहुत प्रसन्न हैं ........चलो ! इस गरीब का दुःख दूर हो जाएगा ।
दस दिन ही बीते होंगें कि ....धन की प्राप्ति शुरू हो गयी थी ........उस आदमी को .................और देखते ही देखते वो तो लखपति क्या करोड़पति बन गया था ........।
कैसे भाई ! कैसे तुम्हारे पास ये धन आया ?
ये प्रश्न कोई ओर पूछता ......तो ये आदमी न भी बताता ......पर पूछा था ....अपनें ही रिश्तेदार नें .........।
रक्त ..............गाँव में जो महात्मा आये हैं ................उस वृक्ष के नीचे बैठते हैं ........उनका रक्त बड़ा चमत्कारी है । उस आदमी नें अपनें रिश्तेदार को ही बताया था ..............।
मेरे पुत्र को क्षय रोग हो गया है ......................वैद्य दवा दारु करके थक गए हैं ..............बस बस उन महात्मा के पास जाओ ...........बात पूरी भी नही कर पाया था ......वो रिश्तेदार ......कि पहले वाले आदमी ने भेज दिया उन महात्मा जी के पास ।
क्या कष्ट है वत्स ! बड़े प्रेम से महात्मा जी नें इससे भी पूछा ।
पुत्र को क्षय रोग है ..........बहुत दुःखी हूँ मै .....क्या करूँ भगवन् !
मेरे शरीर से एक बून्द रक्त ले लो ..........और उस बालक के वक्ष में लगा देना ............ठीक हो जाएगा ।
काँटा लिया उस आदमी नें भी ......और चुभो दिया .......महात्मा के ।
सच ! कितना स्वार्थी है ये जगत .......है ना ?
ठीक होना ही था ......उस बालक का क्षय रोग .......ठीक हो गया ।
बात उड़नें लगी ......भीड़ लगनें लगी अब तो महात्मा जी के पास .......लाइन में लोग खड़े होते .......और अपनें अपनें हाथों में काँटा लिए .......या घर से ही कोई सुई ले आता ...........और रक्त ।
महात्मा जी का शरीर सूखनें लगा .........सूखेगा ही ...........रक्त निकाला जा रहा था .............पर महात्मा जी को कोई कष्ट का अनुभव नही होता ...उन्हें तो आनन्द आता था..........दुःखी लोग सुखी होकर तो जा रहे थे ....दुःख दूर होगा इन बेचारे लोगों का ........महात्मा प्रसन्न थे ।
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मुझे भी एक बून्द रक्त की चाहिए ..................
महात्मा जी मूर्छित हैं ..................दस दिन होगये .....हजारों लोग लाइन लगा लगा कर रक्त निकालते रहे ...............और खुश होकर जाते रहे .......बेचारे महात्मा की किसे परवाह ?
दो दिन से मूर्छित हैं महात्मा जी ।
पर इस स्वार्थी संसार का एक आदमी आज फिर आगया था ।
मुझे भी रक्त की बून्द चाहिए ।
महात्मा जी बेहोश् हैं.......कुछ बोलनें की हिम्मत भी अब नही रही थी ।
पर स्वार्थी जगत कैसे छोड़ देता इन महात्मा को .......अपना स्वारथ सिद्ध करना ही था ।
जैसे तैसे पानी डाल कर ..........महात्मा के ऊपर .....हिलाकर डुलाकर जगानें का प्रयास किया .............।
हाँ वत्स ! क्या बात है ?
थोडा होश् आया ............तो धीरे से बोले थे वो महात्मा ।
मुझे भी एक बून्द रक्त की दे दो ..............
महात्मा जी बोले....वत्स ! अब इस शरीर में एक बून्द भी रक्त नही है ।
मै निकाल लूंगा ......बस आप हाँ बोल दो ..........
महात्मा जी थोडा मुस्कुराये ............तुम जैसे निकाल सको .....निकाल लो ............।
ओह ! कैसा है जगत ....... और कैसे हैं इस जगत के लोग ।
शाश्वत नें ये कहानी सुनाई ........और सुनाते हुए बोला ........
पता है उस आदमी नें क्या किया ?
उसनें उन महात्मा जी को उल्टा लटकाया पेड़ से .............और नीचे से आग लगाई .................
एक बून्द ही निकला था रक्त ..............उस रक्त को पाकर वो तो नाच रहा था ..............
तभी दूसरा दुःखी आदमी और आगया .........मुझे भी एक बून्द रक्त ।
ये सब देखा नही गया .....और वही सात्विक देवता प्रकट हो गए ...............
महात्मा जी को देखते हुए .........उस देव के भी आँसू गिर रहे थे ।
वरं ब्रूहि ...........देवता बोल उठे ।
महात्मा जी नें देखा .....प्रणाम किया .........और बोले .....सब का दुःख मुझे दे दो ।
अब तो देवता नें झुक कर उन महात्मा जी के चरण छूए थे ।
शाश्वत कहता है .............ज्यादा लोगों के दुःख दूर करनें के फेर में नही पड़ना चाहिए .............पर कुछ देर रुक कर फिर शाश्वत कहता है .....साधू अपना स्वभाव कहाँ ले जाए ..........।
बिच्छु का स्वभाव है ...डंक मारना ...साधू का स्वभाव है ......करुणा ।
Harisharan
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