"निष्काम सन्त" - एक कहानी

आज के विचार

( "निष्काम सन्त" - एक कहानी )

ताके पीछे हरि फिरे......
( सन्त मलूक दास )

जा ! मदन मोहन !   तेनें मेरा दिमाग खराब कर दिया है .......

मै तुझ से बात नही करूँगा ............यार !  भजन भी करनें दोगे या नही ........या फिर इसी प्रपञ्च में डाल दोगे  ।

बहुत गुस्सा हो गए थे  ये बाबा .......हाँ   और आपको जानकर आश्चर्य होगा  ये गुस्सा हुए थे .....अपनें   आराध्य  श्री ठा. मदन मोहन जी से ।

बाबा !  तू  आजकल थोड़ी थोड़ी बात में बहुत गुस्सा होनें लग गया है ।

मन्दिर में बैठा  छोटा सा  मदन मोहन  अब विग्रह से  बाहर आगया था .........और पीछे से  दोनों हाथों को  उन बाबा के कन्धे में डाल कर झूल रहा था ।

बाबा !   मैने क्या कहा है  ....बस  एक  चुटकी भर नमक ही तो माँगा है !

मदन मोहन  लाल नें उन बाबा को उलाहना देते हुए कहा ........क्या एक चुटकी भर नमक नही दे सकते ?    वाह ! बातें तो बड़ी बड़ी करते हो !

गुस्से से  तमतमा गए थे  वो बाबा ..............देख ! मदन मोहन ! ज्यादा मत बोल ........नही तो  मै तुझे किसी और महात्मा को दे दूँगा ....और कहूँगा  इस विग्रह की सेवा पूजा तुम करो .........।

बस इतनी बात  क्या कही  उन बाबा नें .....तुरन्त   शान्त हो  गए मदन मोहन .....और मुँह फुलाकर बैठ गए .......इधर  मुँह फुलाकर ये महात्मा जी बैठे हैं .......यमुना जी का किनारा है ..........ऊंचा टीला है .....वर्षा ऋतू है .....यमुना में  जल  अगाध है  ।

पर  ये दोनों    एक दूसरे से रूठे हैं ......................

अब आप भी जानना चाहोगे ना .......कि ऐसी क्या बात हो गयी है ......कि  आराध्य से  स्वयं  भक्त रूठ गया है ........तो सुनिये ।

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एक महात्मा जी थे ....जिनका नाम था सनातन गोस्वामी ........

ये बंगाल के थे ........और चैतन्य महाप्रभु के  अनुयायी थे ।

चैतन्य महाप्रभु की आज्ञा से ही  ये श्री धाम वृन्दावन का वास कर रहे थे .............पूर्ण निष्किञ्चन् ...........किसी से कोई  अपेक्षा नही .......किसी से कुछ माँगना नही ............हाँ .......एक  सेव्य ठाकुर जी थे ....ये सेव्य ठाकुर जी भी कोई महात्मा जी दे गए थे ......नाम रखा था ...मदन मोहन ! ......।

बस  इन्हीं की सेवा करते थे .................।

नियम था इनका .....बस  पाँच घर  से  आटा माँग कर लाते ..........बस आटा .................।

उसी आटे को एक पात्र में जमुना जल डालकर घोल लेते ........और  अपनें आराध्य मदन मोहन जी को भोग लगाते ......और  स्वयं उसे ही पीकर  भजन करते रहते .........।

अब ये तो  ठहरे  महात्मा ......पूर्ण महात्मा ..........

पर भगवान मदन मोहन  महात्मा थोड़े ही है .....................

बाबा !   बाबा !     विग्रह में से आवाज आई थी ............सनातन गोस्वामी जी उठे ..........कौन  ? 

बाबा !  मै मदन मोहन ................देखते ही देखते   मदन मोहन  जी तो विग्रह से बाहर आगये थे.............और सुन्दर बालक बनकर ...........बाबा के गले में अपनें  दोनों हाथों को डाल कर बोले ........बाबा !    एक बात कहनी थी ........कहूँ   ?

हाँ हाँ ....कहो ................अपनी झोली माला में हाथ डालते हुए  ......बड़े प्रेम से माला में नाम जप करते हुए ......सनातन गोस्वामी जी बोले ।

बाबा !     बात ये है  कि ..........तुम आटा तो लाते ही हो ..........पर आटा को खोल कर    मुझे पिला देते हो .........बाबा !  मुझे ये सब अच्छा नही लगता ......सुनो !     आटे के टिक्कड़ बना दिया करो ना !

मदन मोहन जी नें  बड़े  प्रेम से कहा  ।

पर सनातन गोस्वामी जी सोच में पड़ गए .........टिक्कड़ के लिए तो आग चाहिये ..... लकड़ी  चाहिये  ..............लकड़ी की व्यवस्था करो ......अब लकड़ी कहाँ मिलेगी .................वैसे तो जंगल है ....लकड़ी तो मिल जायेगी .....पर  जब वर्षा हो  तब  ?

बाबा !  मेरे लिए इतना नही कर सकते  ?     

मदन मोहन नें   गेंद की तरह मुँह फुला लिया .........।

अच्छा !  अच्छा !   ठीक है .................मै देखता हूँ  ......सनातन गोस्वामी जी इससे ज्यादा कुछ बोले नही  ।

अब तो दूसरे दिन  आटा लाये .........और कहीं से   लकड़ी  अपनी चादर में ही  बाँध कर ले आये .............और  आग जलाकर  दो  टिक्कर बना दीं ......और छाँछ ...............ये  दो  वस्तुएँ भोग लगाईं  ।

चलो !  दो तीन दिन  तक  तो सब ठीक रहा था .............

पर   चौथे दिन  की रात में ....फिर वही  घटना ।

बाबा !  ओ बाबा !      छोटे से मदन मोहन जी फिर प्रकट हो गए ।

हाँ  अब  क्या है ?         सनातन  गोस्वामी जी नें  कहा   ।

बाबा !  एक बात है .................

क्या बात है   बोलो ?  सनातन गोस्वामी जी नें पूछा ।

सुन बाबा !    तू जो  देता है ना ...टिक्कड़ और छाँछ ............इसमें अगर  थोड़ी सी  चुटकी भर  नमक अगर  तू दे दे ..........

तुरन्त उठे सनातन गोस्वामी जी ...........मै कल सुबह ही   फलानें महात्मा जी के पास तुम्हे छोड़ आऊंगा ........तुम वहाँ रोज छप्पन भोग खाना ........ठीक है ....?    मेरे पास इतनी व्यवस्था नही है  ।

कल कहा टिक्कड़ बना दो .....मैने बना दिया ......अब कह रहे हो नमक डाल दो .........कल कहोगे ......घी लगा दो ....परसों कहोगे   तेल में बढ़िया भाजी बना दो ..........मुझे नही पड़ना प्रपञ्च में .....और हाँ .......मै कहाँ से लाऊँगा  नमक ?     लोगों से माँगू मै ?  

मुझ से ये सब नही होगा ......मेरे पास में रहना है  तो यही खाना पड़ेगा ....नही तो  मै किसी और महात्मा को सौंप देता हूँ  ।

इतना बोलकर  यमुना जी की  ओर मुँह करके  सनातन गोस्वामी जी बैठ गए ...............गुस्से में बैठ गए  ।

और  सनातन गोस्वामी जी के पीछे ........मदन मोहन  जी मुँह फुलाकर बैठे हैं .............पर डर भी रहे हैं   बाबा से कि,   कहीं  मुझे  किसी ओर को दे न दें .........।

दोनों ही   यमुना जी को देख रहे हैं ..................रात्रि के 2 बज रहे हैं ।

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आज कल की तरह यमुना जी नही थीं उन दिनों ........वृन्दावन में यमुना जी पहले बहुत गहरी थीं ...........आप  इतिहास पढ़िए ........दिल्ली से आगरा   और आगे   यमुना जी के जल मार्ग से होकर भी  चलता था  व्यापार ............बड़े बड़े जहाज चलते थे यमुना जी में  ।

शेर सिंह !.....जरा ध्यान से ........ये वृन्दावन  है ............यहाँ यमुना जी बहुत गहरी हैं...............ध्यान से चलना ...।

ये शेर सिंह ..........नाँव  चला रहा था ...............जमुना जी में ।

जो व्यापारी था ...............वो  स्वयं नाव में बैठा था  ।

चारों और  इन दिनों नमक की  काला बजारी हो रही थी ..........क्यों कि  नमक  को  नाना सीमाओं में रोक दिया गया था ........मुगलों का शासन था .............।

ये पानी जहाज  दिल्ली से चला था नमक लेकर....  और इसे जाना था आगरा ...............।

पर  वृन्दावन में आकर .......................फंस गया ..........बहुत सावधान किया  व्यापारी नें पर   जहाज को चलानें वाला   सावधान ही नही था .......।

""अजी ! सावधान तो था .......पर  ऊपर  बाबा से रूठ कर जो बैठा था ....मदन मोहन .....असली लीला धारी तो वही है । ""

पानी जहाज    अड़ गयी .....नमक की जहाज,    किसी बहुत बड़े  दलदल में फंस गयी .............।

क्या यार ! शेर सिंह !   तू भी ......व्यापारी नें देखा ...............चारों ओर अन्धकार ही अंधकार है ................धक्का कोई दे दे  तो  शायद ये नाव निकल जाए ......पर   धक्का देनें के लिए भी कौन मिलेगा ....इतनी रात में ..........।

व्यापारी सोच ही रहा था  कि .......ऊँचे टीले में देखा .....कोई बैठा है ।

दौड़ कर  पहुँचा उस टीले में वो व्यापारी  ।

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जय हो साधू महाराज !      सुनिये ना !   मेरी नमक की नाव फंस गयी है ....उसे निकलवा दो ...........आपके चेले होंगें   .....आपकी बड़ी कृपा होगी .........महाराज !     !

उस व्यापारी नें   सनातन गोस्वामी जी से बड़ी प्रार्थना की .....

दिमाग खराब था  सनातन गोस्वामी जी का ......क्यों की मदन मोहन से तूतू में में  हो गयी थी ........नमक को लेकर ।

मदन मोहन से बात करो ..........अब जो करना हो , वही करेगा .....मुझे मतलब नही है  !    सनातन गोस्वामी जी नें स्पष्ट कह दिया था ।

व्यापारी नें पीछे मुड़कर देखा ..........एक सुन्दर सा सांवला बालक बैठा है .........व्यापारी उसके पास गया ..............

व्यापारी कुछ बोलता  .........उससे पहले ही मदन मोहन जी बोल पड़े .......सुन ! .....चार बोरी  नमक की    यहाँ रख देनी पड़ेगी ......बोल ?

व्यापारी तो  स्वरूप और   वाणी सुनकर ही मन्त्र मुग्ध हो गया  ।

चार नही .....दो बोरी ........मुझे नही चाहिये नमक ...........तेरे लिए  वर्षों तक के लिए हो जायेगा ......ज्यादा नमक कहाँ रखूंगा ।

"नाटक करता है ....ये भी"...............मदन मोहन के लिए इतना कहकर  सनातन गोस्वामी जी  फिर नाम जपनें लगे  ।

चल  सेठ !  चल !        ये बाबा ! थोडा  खुँसट हो गया है !    मदन मोहन नें कहा ।

तेरे कारण हो गया हूँ ......समझे  !

इतना बोलकर   सनातन गोस्वामी जी नें जमुना जी की ओर, और मुँह करके  नाम जपनें लगे ।

अच्छा ! बाबा ! समझ गया ...................

चल  सेठ !  तेरी जहाज    मै निकालता हूँ ।

बस  धीरे से   धक्का लगाया .....मदन मोहन नें .......नाव चल दी ।

दो बोरी नमक की उतार दी  व्यापारी नें  ।

बाबा !  ओ बाबा !  ले नमक ले आया हूँ ............

अब तुझे चिन्ता करनें की जरूरत नही है ..............मैने अपनी व्यवस्था  स्वयं कर ली है  ...मदन मोहन नें नमक की बोरी दिखाते हुए कहा ।

सनातन गोस्वामी  जी  आये ..........अकेले  मदन मोहन जी को नमक की बोरी घसीटते हुए देख कर  पसीज गए .......दौड़े ।

बिना कुछ बोले ..........नमक की बोरी लाकर रख दी ।

फिर सनातन गोस्वामी जी   जमुना जी को देख रहे हैं नाम जपते हुए ।

अरे ! बाबा !    नमक की व्यवस्था भी मैने कर दी ......अब तो हँस दे .....देख तेरो काम कर दियो है मैनें ........अब तो हँस दे बाबा !

पर  कल  को बारिश हो गयी तो ......ये नमक  ?  टूटी झोपडी है !

सनातन गोस्वामी  जी के  पीछे से अपनी गल वैयाँ देते हुए  मदन मोहन जी बोले ..........वो व्यापारी  अब   मन्दिर भी बना देगा .........क्यों की उसके साथ चमत्कार होंने वाला है .............।

फिर  कोई  प्रपञ्च फैला दिया है क्या  ?     कृपा करो ....मुझे भजन करनें दो ......मुझे ये सब  प्रपञ्च नही चाहिए  ।

सनातन गोस्वामी जी के  गोद में बैठ गए थे  मदन मोहन जी ।

गुस्सा थूक दे ..........बाबा !   देख  गुस्सा छोड़ दे  ।

जैसे ही  सनातन गोस्वामी जी की ठोड़ी पकड़ कर मदन मोहन इतना ही बोले थे........कि  सनातन गोस्वामी जी को आनन्द आगया .........उनके नेत्रों से अश्रु बहनें लगे ......आनन्द के आँसू ...........अपनें हृदय से लगा लिया था  जोर से  सनातन गोस्वामी जी नें  मदन मोहन को ।

अरे ! दव जाउंगो बाबा !    हँसते हुए  चिल्लाते रहे थे मदन मोहन जी ।

( और कहते हैं .....उसी नमक के व्यापारी को बहुत बहुत लाभ हुआ और उसनें ही मदन मोहन जी का  वृन्दावन में विशाल मन्दिर बनवाया )

ये सच्ची कहानी अच्छी है ना !  .......?     

Harisharan

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