आज के विचार
( मै हूँ बीमा एजेंट ...)
स्मर्तव्य सततं विष्णोः.....
( पद्म पुराण )
कल साँझ में, रात्रि का सा भान करा दिया था ......
बादल जो छा गए थे आसमान में ।
लगा कि आज शाम को भी पागल बाबा के दर्शन करके आएं .....ऐसा विचार कर मै कुञ्ज में चला गया.......हल्की हल्की बुँदे पड़नी शुरू हो गयीं थीं.....मै जल्दी ही बाबा की कुटिया में पहुँचा ।
हाँ .........बोलो ! मै एजेंट हूँ .......और बोलो ?
बाबा एक साधक के प्रश्न का उत्तर दे रहे थे ........ये साधक तो काफी पुरानें हैं.....अभी तक इनके मन में प्रश्न हैं ? मुझे आश्चर्य हो रहा था ..........ये तो बाबा के अच्छे सत्संगी हैं .......अन्य लोगों को भी समझाते डोलते हैं .............।
मै हूँ जीवन बीमा का एजेंट ..........
बाबा हँसते हुए बोल रहे थे ......जैसे जीवन बीमा वाले विशेष आग्रह करते हैं .......और जो जो प्रलोभन दिखाना हो ......वो दिखा भी देते हैं ।
पर सामनें वाले की बीमा बनवाके ही मानते हैं ..............मै भी वही हूँ .......पर सच में मेरी बीमा "जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी"
मेरी बीमा का लाभ केवल मरनें पर ही नही मिलेगा ....जीते जी मिलेगा ।
और जब से तुम इस जीवन बीमा के सदस्य बन जाते हो ......उसी समय से तुमको लाभ मिलना शुरू हो जाता है ...........
बाबा बड़े जॉली मूड में थे आज ...........मुझे बहुत अच्छा लग रहा था बाबा का इस तरह से बोलना ......वो हँस हँस कर बोल रहे थे ।
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ये साधक पुरानें हैं .................नये में नित्य ये दो लाख माला जपते थे ..........पर धीरे धीरे आज घटते हुए मात्र 16 माला रह गयी है ।
इनका कहना है कि ...............आपनें कहा ........."हे नाथ ! मै तुम्हारा हूँ"......इस बात को दिल से मान लो......बस हो गया ।
बाबा के सामनें इन्होनें ये प्रश्न रखा ।
बाबा महाराज ! आपनें कहा ....भगवान से कोई रिश्ता बना लो.....भाई, पिता, मित्र, पति पुत्र, शत्रु ........कुछ भी .....बस तुम्हारा काम बन गया ...........तुम्हे कुछ करनें की जरूरत नही है ।
उन साधक नें ये भी कहा .......कि भजन न करें तो ?
हृदय से ही पक्के तरीके से मानना ही तो है .....बस हमनें मान लिया है ।
बाबा हँसे थे .................फिर हँसते हुए बोले थे .......देखो ! मै हूँ तुम्हारी जीवन बीमा का एजेंट .......वैसे एजेंट बहुत हैं ........पर तुम देख लो ......तुम्हे किसका प्लान अच्छा लगता है ।
बाबा आज बहुत लाइट मूड में थे .............।
पर बीमा मात्र लेनें से थोड़े ही होगा !
बाबा फिर पूछनें लगे ........"हे प्रभु ! मै तुम्हारा हूँ" .....ये तो हो गया बीमा .........पर ये बात तुम किसकी सन्निधि में कह रहे हो ?
कोई तो होगा ना ........जिसे तुम एजेंट कहते हो ...............उसके बिना स्कीम , प्लान ये सब कौन समझायेगा ।
बाबा फिर बोले ..........देखो ! अब तुमनें मुझ एजेंट से बीमा भी बनवा ली .............शरणागति ले ली ...............।
अब तुम बताओ .....बीमा बनानें के बाद क्या करना पड़ता है ?
वो साधक हँसा ..............मै समझ गया भगवन् ! मै समझ गया ।
बाबा खुद ही बोले .......बीमा करनें के बाद ............ऐसे ही पड़े रहोगे तो बीमा खतम हो जायेगी..........फिर उसका कोई लाभ तुम्हे नही मिलेगा ........।
बाबा बोले ...............बीमा के बाद जरूरी है .......कि हम किश्त भरते रहें ..............अगर किश्त भरना तुमनें छोड़ दिया .......तो तुम्हारी बीमा भी खतम ...........इसलिये पहले बीमा करवाओ .....फिर ध्यान से ....सावधानी पूर्वक ..........किश्त भरते रहो ..........।
बाबा की बातें सब लोगों के समझ में नही आई ...........तब बाबा नें फिर समझाया..................
देखो ! भगवान की शरणागति लेना बीमा है ....".हे नाथ ! मै तुम्हारा हूँ" .......ऐसा हृदय से बोलना शरणागति है ...........इसी को मै बीमा कह रहा हूँ .........।
और नित्य नाम स्मरण ....नित्य ध्यान , नित्य सत्संग ।
अब बाबा ! आज कल नित्य सत्संग कहाँ मिलता है ?
साधक के इस प्रश्न पर बाबा नें कहा.......ये शास्त्रों का चिन्तन सत्संग ही तो है ।
आप को गोस्वामी श्री तुलसी दास जी का सत्संग करना है ......तो रामचरितमानस का पाठ करो .......विनय पत्रिका का पाठ करो ।
आपको श्री शुकदेव जी का सत्संग करना है तो भागवत जी का पाठ करो ............।
बाबा बोले - ऐसे ही ध्यान रखो ..............सावधान रहो ।
प्रमाद मत करो ............।
बाबा फिर बोले ............ऐसा है - मैने पहली बार भारतीय जीवन बीमा के मोनो को ध्यान से देखा था ।
उस मोनो के नीचे ...संस्कृत में लिखा हुआ एक श्लोक रहता था .।
" योग क्षेमं वहाम्यहम् "
बाबा कहते हैं ........ये श्लोक तो भगवतगीता का ही है ।
तब से ही मेरे मन में ये विचार आया था कि ...... बताओ हमारा दुर्भाग्य ......जब गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ... ..."मै तेरा सबकुछ सम्भाल लूंगा .....तू चिन्ता छोड़ दे ।
अब कृष्ण कहे .....आस्तित्व कहे .... तो हमें भरोसा नही है ...........पर एक बीमा वालों पर हमारा पक्का भरोसा है ...........।
साधकों ! याद रहे .......मेरे वाले इस बीमा को करवानें पर .......तुरन्त ही शान्ति , आनंद , सुख .......सब कुछ मिलनें लगेगा ।
पर मरनें के बाद भी.......भगवतधाम की तो प्राप्ति सुनिश्चित है ।
आप गारन्टी ले रहे हैं......? उस साधक नें पूछा
हाँ मेरी पूरी गारन्टी है ...........पर आज जीवन बीमा के सदस्य जोश जोश में तो बन गए ....पर किश्त भरी नही.........मेरे साधकों ! ये ध्यान रखो ........कि किश्त एक भी दिन नही छूटनी चाहिए ।
मै बीमा रूपी ईश्वर की शरणागति .....करवा देता हूँ .......अब तुम्हारी बीमा तो हो गयी......पर भजन मत छोड़ना....नाम जप मत छोड़ना..।
क्यों भई ! बीमा करवाते समय तो खूब कह रहे थे ..............इतनी किश्त तो भर दूँगा .............अगर नही भर सकते थे ......तो इतनी बड़ी बड़ी क्यों छोड़ना ।
बाबा बोले ...............मै भगवान का हूँ ..............इसे पक्के तरीके से मान लो .............पर इसके बाद ......नित्य नियम से .....भले ही कम माला करो.......बाद में बढ़ा लेना ..........पर कम ही सही नाम मन्त्र का आश्रय लो ..............इसके बिना नही होगा। ।
थोड़ी किश्त ध्यान की भी भर दो ।
बस इतना कर दोगे ना ..............तो तुम्हारा काम बन गया ।
पर याद रहे किश्त समय पर चुकाते रहना पड़ता है ................।
बाबा इतना ही बोले .......और चुप हो गए ।
हम लोग वहाँ शान्ति से बैठकर......ध्यान करनें लगे थे ।
बारिश पड़नी शुरू हो गयी थीं .................मोर नाच रहे थे ।
Harisharan
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