( शाश्वत की कहानियाँ )
!! श्रीनिम्बार्काचार्य चरित्र - भाग 4 !!
नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै, नमस्ते नमस्ते मुकुन्द प्रियायै ..
( श्री निम्बार्क प्रणीत श्रीराधिकाष्टक स्तोत्र )
कल से आगे का प्रसंग -
आहा ! शरद की सुहावनी सन्ध्या है .........वातावरण में अपूर्व शान्ति ।
पक्षियों के झुण्ड के झुण्ड उड़ते हुए गिरिराज पर्वत की परिक्रमा लगा रहे हैं ।
आँखें बन्द करके .....गिरिराज गोवर्धन की तलहटी में बैठे हैं श्री निम्बार्क प्रभु ।
आहा ! .................वो एक है ............क्यों की उपनिषद् वाक्य हैं ....."अहं ब्रह्मास्मि" ( मै ब्रह्म हूँ ) ये अद्वैत की चर्चा उपनिषद् करती है .....जो मिथ्या कैसे हो सकता है !
फिर श्री निम्बार्क प्रभु विचार करते हैं ......."द्वा सुपर्णा सयुजा सखायौ" ये भी तो उपनिषद् कहते हैं .........
दो पक्षी हैं .................एक जीवात्मा और एक परमात्मा ........एक वृक्ष में हैं .......दोनों ही पंख वाले हैं .....दोनों ही सजातीय हैं ......।
फिर ये तो द्वैत हुआ ...........निम्बार्क प्रभु आनन्दित होते हैं ....
दोनों ही सत्य हैं .......द्वैत भी और अद्वैत भी ।
गौ चर रही हैं .......गिरिराज की तलहटी में .........।
पास में ही हिरणियाँ बैठी हैं .....और जुगाली कर रही हैं.......अपनें ही बच्चों की उछल कूद से ......कुछ चिढ सी रही हैं ....ये हिरणियाँ ।
वो उठती हैं ......और निम्बार्क प्रभु के पास आती हैं ..........उनके माथे को सूँघती हैं ..............पर निम्बार्क प्रभु तो ध्यान मग्न हैं ।
मोरों का झुण्ड एकाएक उड़ते हुए ...........पास में ही आगया है ......
वो नाच रहे हैं ..................मानों निम्बार्क प्रभु को रिझानेँ का प्रयास कर रहे हैं ...........पर निम्बार्क तो गहरे चले गए हैं ध्यान में ।
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श्री कृष्ण की सखा मण्डली है.........सब सखा कन्हैया से बड़े हैं .....पर एक सखा है जो श्री कृष्ण से भी छोटा है ....तोष ......हाँ यही नाम है ।
तोष ! तुम्हे नृत्य आता है...कन्हैया नें आज अकेले में पूछ लिया था ।
सब ग्वाल सखा कह रहे हैं .......तोष को नृत्य बढ़िया आता है .....और सिखाता भी बढ़िया है ....बरसानें की सखियों को यही तो सिखाता है ।
तोष मन्द मुस्कुराते हुए खड़े हैं ।
ए तोष ! मेरे मित्र ! मेरे सखा ! तू अपनें कन्हैया को नही सिखाएगा ?
बरसानें की सखियाँ .........हम्म !
कन्हैया छेड़ते हुए बोले ..........बरसानें की सखियों को ही सिखाएगा ना तू तो ?
तुम कितना बोलते हो ...............तोष नें पास में जाकर अपना हाथ कृष्ण के मुख में रख दिया था ..........
मैने कहा है क्या ! कि मै तुमको नही सिखाऊंगा ?
उछल गए .............श्री कृष्ण .........सच ! तू सिखाएगा मुझे ?
मेरी सारी विद्या तुम्हारे लिए ही तो है मेरे श्याम सुन्दर !
ये कहते हुए ..........तोष नें श्री कृष्ण चरणों में अपनें हाथ रख दिए ।
अब देख ! तोष ! मुझे ये बिल्कुल अच्छा नही लगता कि तू बार बार मेरे पैरों में गुलगुली करता है .........।
मैने गुलगुली कहाँ की है ? तोष हँसते हुए बोला ।
तू मेरे पैर बहुत छूता है ......तब मेरे गुलगुली नही लगेगी क्या ?
कृष्ण ने नाटकीय रोष प्रकट किया ।
मैने न तुम्हारे चरण छूए हैं ............तोष के ये कहते ही तपाक से मोरमुकुट धारी बोल गए .....तो क्या कर रहा था मेरे पैर में ?
अपनी सारी विद्याएँ तुम्हारे चरणों में चढ़ा रहा था ............भाव की उच्चावस्था में पहुँच कर तोष बोल रहा था ।
अच्छा ! झूठे ...................कृष्ण नें इतना ही कहकर इस बात को यही खतम किया .........और अपने मूल मुद्दे में आगये ।
देख ! तोष ! मै तुझे ही बता रहा हूँ ..........कल बरसानें में सखियों नें नृत्य प्रतियोगिता रख दी है .......किसके साथ ? मुस्कुराते हुए तोष बोला .....अब तू मुझे छेड़ रहा है ......अरे ! अपनी श्री जी के साथ ।
ओह ! फिर तो मुझ से ये दुरूह कार्य नही होनें वाला ..........तोष नें सीधे मना कर दिया ।
अरे ! सुन तो ..........क्यों नही होगा .......तुझ से ये कार्य ......?
देखो ! तुमको भले ही 16 कला आती हैं ...........पर हे कन्हैया ! "श्री जी" को 64 कलाएं आती है .............क्यों हारना चाहते हो बरसाने वालों के साथ ............मत जाओ वहाँ ।
देख ! तोष ! तू मेरा सखा है ना ! तू मेरा साथ नही देगा क्या ?
ये क्या हाथ जोड़कर कन्हैया ही तोष के सामनें खड़े हो गए .......
ये दृश्य देखा नही गया ....तोष से .......ये क्या कर रहे हो ........ऐसे मत करो .........अच्छा ! चलो श्री जी से हारनें में तुम्हे इतना ही अच्छा लगता है ......तो सीख लो .....नृत्य ।
और तोष सखा नृत्य सिखानें लगे कन्हैया को ।
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निम्बार्क प्रभु ध्यान कर रहे हैं ..........तोष सखा यही तो हैं .......
हाँ यही हैं ............माधुर्य जगत में .......ये निम्बार्क तोष सखा हैं ........श्री जी की प्रिय सखी रँग देवी हैं ........और ऐश्वर्य जगत में .......ये सुदर्शन चक्र के अवतार हैं ...............।
है ना ! यहाँ भी समन्वय ...........ऐश्वर्य और माधुर्य का समन्वय ।
ये बात शाश्वत लिखता है .............।
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तो फिर नृत्य नही सिखाया आपनें अपनें सखा को हे कृष्ण सखा तोष !
निम्बार्क प्रभु नें अपनें नेत्र खोले .........ओह ! ये क्या सामनें खड़े थे वीणा बजाते हरि गुण गाते देवर्षि नारद जी ।
तुरन्त उठे निम्बार्क प्रभु ......साष्टांग प्रणाम किया देवर्षि के चरणों में ।
मेरे पिता ब्रह्मा जी नें मुझे बताया था कि सुदर्शन चक्र का अवतार हुआ है .....और मात्र इतना ही नही .......श्री राधा रानी की अष्ट्यूथेश्वरी में अग्रवर्ति सखी श्री रँग देवी के आप ही अवतार हैं .......और गोलोक में कन्हैया के साथ नित्य सखा तोष आपही तो हैं ।
देवर्षि नारद जी नें ये सारी बात निम्बार्क प्रभु को बताई ।
हे देवर्षि ! आप मुझे श्री कृष्ण मन्त्र का उपदेश करें .......
और श्री हंस भगवान नें जो श्री सनकादि ऋषियों को ज्ञान दिया था ....उस ज्ञान को मुझे पता है ....आपनें ही धारण किया है ......।
हे देवर्षि ! मुझे वो ज्ञान देनें की कृपा करें ।
निम्बार्क प्रभु नें हाथ जोड़कर देवर्षि से प्रार्थना की थी ।
तब देवर्षि बोले -
हाँ......मै अठारह अक्षरों का ये दिव्य मन्त्र आपको प्रदान करता हूँ .......हे निम्बार्क ! ये मन्त्र अति प्राचीन है ..........इसका कोई भी जीव अनुष्ठान करे .........तो उसे प्रत्यक्ष् श्री कृष्ण के दर्शन होंगें ही ।
इसे गोपाल मन्त्र कहते हैं ........ये समस्त मन्त्रों का राजा है ।
( ये मन्त्र बहुत सिद्ध है ........शाश्वत लिखता है ........6 महिनें का अनुष्ठान करना पड़ता है ...........जिसके कुछ नियम है ......अगर ये कर लिया जाए तो श्री कृष्ण दर्शन प्रत्यक्ष् होंगें ही ......मैने भी किया है ....और इस बात का मै साक्षी हूँ । आगे लिखता है शाश्वत .......मधुसूदन सरस्वती..........और आधुनिक जगत में श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी .........इन्होनें गोपाल मन्त्र का अनुष्ठान करके प्रत्यक्ष् श्री कृष्ण दर्शन किया है , और बृज में अनेक महात्मा और साधक हैं जिन्होनें गोपाल मन्त्र का अनुष्ठान करके श्री कृष्ण दर्शन पाये हैं )
आनन्दित हो गए निम्बार्क प्रभु ............
तभी निम्बार्क प्रभु के कान में देवर्षि नारद जी नें..गोपाल मन्त्र दिया ।
और जो ज्ञान भगवान हंस नें ( इसका उल्लेख श्री मद्भागवत के एकादश स्कन्ध में आता है ) सनकादि ऋषियों को दिया था .......वही ज्ञान नारद जी को मिला ......और आज नारद जी नें निम्बार्क प्रभु को प्रदान किया ।
मन्त्र के कान में जाते ही ........एक दिव्यता का संचार हुआ था निम्बार्क प्रभु के हृदय में .........देवर्षि नारद जी तो चले गए ............पर ध्यानस्थ हो गए थे निम्बार्क प्रभु ।
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चारों ओर भीड़ उमड़ी हुयी है ........बरसाने की भीड़ ।
आज नृत्य है ......नृत्य की प्रतियोगिता है ...........श्रीकृष्ण में और श्री राधा रानी में ............।
एक पक्ष नन्द गांव का है .........और दूसरा पक्ष बरसानें का ।
जय जय श्री राधे ........बरसानें वाले बोल रहे हैं ....
और श्री कृष्ण कन्हैया लाल की जय .....नन्द गाँव वाले बोल रहे हैं ।
नृत्य शुरू हुआ ..................तोष सखा ......तैयार करता है ......अपनें कन्हैया को ................देखो ! अच्छे से नाचना ............मैने जो जो सिखाया है ना ........वैसे ही ।
ग्रीवा की मटकन याद है ना ? ............और नेत्रों की भाव भंगिमा ?
हाँ हाँ ....याद है .......कन्हैया तोष को कहते हैं ....।
श्री कृष्ण उतरे मंच में...आवाज तो "जय जय श्री राधे" की ही आरही है.........।
तभी सामनें आयीं .......श्री राधा रानी ...............
उनका वो दिव्य रूप .....उनकी वो रूप छटा .......उनकी बंकभृकुटि ।
अरे ! ये क्या ! तोष सखा परेशान हो गया ............
नाच क्यों नही रहे ....कन्हैया ?
माथा ठोक कर बैठ गया तोष सखा .............
क्यों की इशारे में ही कन्हैया नें कह दिया था.......मै सब भूल गया ।
मै क्या करूँ तोष ! अपनी प्यारी को अपनें पास देखा .....और इनकी वो रूप माधुरी ...........इनके अंग अंग से निकलती हुयी वो छटा ..............! उफ़ ! ...........
ये सब इशारे में बोल दिया था............कृष्ण नें तोष को ।
तुरन्त बरसानें की सखियों नें कहा......चरण छूओ श्री राधा रानी के ।
इसके लिए तो ये तैयार ही हैं ...............तुरन्त चरणों में लेट गए ।
तोष माथा पकड़ कर बैठा रहा.........और बाद में खूब हँसा ।
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क्या बात है निम्बार्क ! तुम इतना क्यों हंस रहे हो ?
ध्यान में ये सब देखते हुए निम्बार्क प्रभु हंस रहे थे ।
पिता अरुण ऋषि आगये थे खोजते खोजते अपनें पुत्र निम्बार्क को ।
उठ गए निम्बार्क प्रभु ।..........पिता जी ! मुझे देवर्षि श्री नारद जी नें ज्ञान दिया है ......और मन्त्र, गोपाल मन्त्र का तत्व भी समझाया है ........।
मेरे गुरुदेव आज से देवर्षि नारद जी ही होंगें ............निम्बार्क प्रभु नें पिता जी को बताया ।.........तो आनन्द से उछल गए थे ऋषि अरुण .....देवर्षि नारद जी आये थे यहाँ ?
हाँ पिता जी !.
......अरुण ऋषि बहुत देर तक अपनें पुत्र निम्बार्क को देखते रहे ....फिर अपनी कुटिया की ओर पुत्र निम्बार्क को लेकर चल दिए थे ।
शेष प्रसंग कल ..........
Harisharan
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🙏🙏🙏🙏
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