राधा रमन जी की भक्ता (बुढी माई)

🙏🏼🙏🏼एक बूढ़ी माई हर रोज अपने घर के बाहर बने क्यारी से फूलों को तोड़कर अपने हाथों से फूलों की माला को तैयार करके राधारमण जी के लिए लेकर जाती है ।वह अपनी्  क्यारी  में से कच्चे आमों को उतार कर उसकी खट्टी मीठी चटनी बनाकर भी राधारमण जी के लिए लेकर जाती है और जाकर कहती है कि यह लो रमणा आज तो खूब भोजन पायो  होगो ये लों मै तेरे लिए खट्टी मीठी चटनी लाई हूँ । ताकि तू अपना भोजन हजम कर सके ।ऐसे ही वह हर रोज अपने हाथों से बनी माला और चटनी राधारमण जी के लिए लेकर जाती है। बूढ़ी माई की नजर बहुत कमजोर होती है तो वह कभी-कभी अपना चश्मा इधर-उधर रखकर भूल जाती है। लेकिन फिर भी वह सुई से माला को  पिरोती है और कितनी बार उसके हाथों में माला को पिरोते  पिरोते  सुई उसके हाथों में कितनी बार हुई चुभ जाती है। एक दिन जब बूढ़ी माई अपने हाथों से एक माला पिरो कर लेकर जाती है और साथ में चटनी लेकर जाती है तो गौंसाई जी को बोलती है कि गुसाईं जी यह माला राधा रमणा जी को धारण करवा दो और साथ में खट्टी मीठी चटनी का भोग लगा दो इतने में राधा रमन जी का ध्यान बुढी माई के हाथों पर पड़ता है तो वह देखते हैं कि उसके हाथों में सूई के कितने  हीछेद हैं और उस छेदो में राधा रमन जी की कृपा से  ही राधा रमन लिखा होता है राधा रमण जी अपने भक्त की इस भक्ति को देकर निहाल हो जाते हैं। अब उनको बूढी माई के माला के इलावा कोई भी माला नहीं सुहाती। उनको बूढ़ी माई के फूलों की माला के साथ साथ माई के हाथों की खुशबू भी भाने लगती है। उनको अब हर रोज चटनी और माला का इंतजार रहता है। एक दिन बूढ़ी माई को बहुत तेज ताप हो जाता है जिसके कारण वह मंदिर नहीं आती लेकिन राधारमण जी उसकी राह देख रहे होते हैं लेकिन बहुत अधिक ताप होने के कारण माई अपने बिस्तर में लेटी रहती है और राधा रमण जी तो याद करती रहती है। अब तो दो-तीन दिन बीत जाते हैं लेकिन बूढी माई नहीं आती ।अब राधारमण जी कोफूलों की माला और चटनी की बहुत याद आती है। उसी दिन दिल्ली से एक सेठ आकर बहुत बड़ा राधारमण जी के लिए बंगला तैयार करवाता है और साथ में छप्पन भोग लगाता है राधा रमन जी का ध्यान इस बंगले की तरफ नहीं और ना ही छप्पन भोग की तरह होता है उनको तो बस बूढ़ी माई के हाथों के बने हार और चटनी का इंतजार होता है लेकिन सेठने भी बड़ी श्रद्धा  से बंगला और भोग लगाया था तो राधा रमन जी भी उसका मान रखने के लिए छप्पन भोग को पा लेते हैं लेकिन भोजन  पाकर उनके पेट में ऐठन होने लगती है और उनको याद आता है कि चटनी होती तो उसको खाकर मेरे पेट की ऐंठन चली जाती ।उधर  कितने दिनों से बीमार होने के कारण बूढ़ी माई से अब उठा नहीं जाता वह बस लेटी लेटी राधारमण जी को याद करती रहती है और उसकी आंखों से गरम-गरम आंसू निकलते  जाते हैं और वह राधारमण जी को याद करते करते मन में गाने लगती और कहती है
आओ राधा रमण लाल तरस रहे नैना ।
तरस रहे नैना बरस रहे नैना
यही पुकार करती करती वो आंखों में से आंसू बहाती रहती है
अपने भक्त की  करूण पुकार सुन कर राधा रमण लाल जी व्याकुल हो जाते हैं और वह भागे भागे बुढ़िया के घर चले जाते हैं। और बुढिया के सिर पर हाथ रख कर कहते हैं कि माई जितना तू मुझको याद कर रही है उतना मैंने तुझको याद करता हूं तू घबरा मत अब से तेरा ताप बिल्कुल ठीक हो जाएगा ।मुझे तेरे हाथों की माला और चटनी की बहुत याद आती है। बूढ़ी माई को लगता है कि जैसे वह सपना  देख रही है जब वो आंखें होती हैं तो उसके आसपास कोई नहीं होता ।वह थोड़ा सा उठती है तो देखती है कि उसका तो ताप बिल्कुल ठीक हो चुका है ।और वह  पहले जैसी चुस्त दुरुस्त हो जाती हैं ।वह रात में ही जल्दी जल्दी  क्यारी में से फूलों को और आम को तोड़कर माला और चटनी तैयार करती है। सुबह-सुबह ही वो राधा रमन जी के मंदिर की तरफ चल पड़ती है और सारे रास्ते बस यही कहती है कि आ रही हूं राधा रमणा आ रही हूं मैं ।
बहुत दिन हो गए तुझे मिले हुए अब यह जुदाई बर्दाश्त नहीं होती। बस आ रही हूं ।मेरे रमणा मेंरे राधा रमना बस यही कहती जाती है।मंदिर  पहुंच कर वह राधा रमन जी को माला धारण करवाती है तो राधा रमन जी माला को धारण करके ऐसे इतराते हैं जैसे कि वृंदावन के  सेठ हो।
सेठ तो वो है ही।
राधारमण जी बूढ़ी माई को बड़ी ही प्रसन्नता से निहारते हैं और बूढ़ी माई राधारमण जी को बड़ी ही करुणा भरी दृष्टि से निहारती रहती है और उसका लाख-लाख धन्यवाद करती है कि उसने उनकी चटनी और फूलों को स्वीकारा ।वह दोनों  एक दूसरे को बस देखते जा रहे हैं कि सांसारिक आंखें उन दोनों की इस भाव को नहीं समझ सकती कि केवल एक भक्त और भगवान ही समझ सकते हैं। आज भक्त और भगवान का मिलन हो रहा है। बोलो भक्त वत्सल भगवान की जय हो ।
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