🙏राधेश्याम राधेश्याम🙏
एक बार एक महात्मा ओर उनके पाँच शिष्य थे। वो काफी दिन तक वृन्दावन में रहे ओर भजन कीर्तन करते रहे और श्री जु बिहारी जी का भोग खाते रहे।।
कुछ समय वृन्दावन में रहने के बाद उन्होंने अपने गांव जाने की तैयारी की। जब गांव के लिए गाड़ी में गए तो गाड़ी यात्रियों से काफी भरी हुई थी,,महात्मा जी और उनके शिष्यों को बेठने के लिए सीट नही मिली,,तो वो लोग खड़े होकर जाने को तैयार हो गए।।
जहाँ वो लोग खड़े थे,,वही पर ऊपर वाली सीट पर कुछ युवा लड़के नीचे को पाँव लटकाये बैठे थे,,साथ ही उन्होंने जूते भी पहन रखे थे।
गाड़ी तेज चलने के कारण एक लड़के के जूते महात्मा जी के सिर में बार बार लग रहे थे। लेकिन उस लड़के ने अनदेखा कर दिया।
महात्मा जी के शिष्य काफी देर से देख रहे थे,,लेकिन कोई बोला नही।। जब धैर्य की हद हो गई तो उनमें से एक शिष्य लड़के से क्रोध में बोलने लगा और कहा कि आपको शर्म आनी चाहिए कि आपके सामने इतनी बड़ी आयु के महात्मा जी खड़े हैं और आप लोगो में से किसी ने भी बैठने को नही बोला,, बैठना तो दूर आपको ये भी पता है कि आपका जूता बार बार उनके सिर पर लग रहा है,,ये देखने के बाद भी आपने अपने पैर पीछे नही किये।
इतने में महात्मा जी ने अपने शिष्य को शांत होने को कहा,,लेकिन शिष्य का क्रोध कम नही हो रहा था,,तो महात्मा जी ने कहा कि इन लड़को का कोई कसूर नही है,, तो शिष्य बोला तो ही बताइए कि ये क्या हो रहा है।
तो महात्मा जी बोले तू लड़को पर क्रोध ना करके,,,उस मुरलीधर की लीला को समझ ।लेकिन शिष्य को क्रोध में कुछ भी नही समझ आ रहा था,,,तो महात्मा जी ने बड़े धैर्य से अपने शिष्य को समझाया कि जितने भी दिन हम सब वृन्दावन में रहे,,,वहाँ हमे बिहारी जु के दर्शन,, उनका भजन कीर्तन,, ओर उनका प्रसादी प्राप्त हुई।। ओर जैसे ही हम फिर दुनियादारी में लौटे तो फिर जूते मिलने शुरू हो गए।। ये दुनिया वाले हमे जूते के सिवा और क्या दे सकते है।
अगर हमे अपना जीवन सुखमय बनाना है तो हमे मुरलीधर की शरण मे रहना होगा।
🙇राधे राधे जी🙏
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