एक बार जब चारो भईया बाल लीला में थे, तब भगवान् श्रीराम अनेक बाल लीलाये करते है. . और दशरथ जी और कौसल्या जी को आनंदित करते है. . एक बार प्रभु भरत, लक्ष्मण, शत्रुधन जी, के साथ खेल रहे थे, और सखा भी बहुत से थे, रामचन्द्र जी ने दो समूह बाँट दिए. . और बोले – जो जिस समूह में जाना चाहे, वह उस समूह में चला जाए. . भरत जी बोले – भईया ! आप जिस समूह में होगे, हम उसके विपरीत समूह में होगे, . अब एक ओर राम,लक्ष्मण और बाकि के सखा है, दूसरी ओर भरत और शत्रुधन है. . गेंद का खेल खेल रहे थे, और सबको गेंद अपनी तरफ बचानी थी. . जैसे ही गेंद भरत जी के पास आती, भरत जी प्रभु श्री राम की ओर बढ़ा देते, और ऐसा करके अंत में हार गए, . जब भगवान् श्री राम ने पूंछा – भरत ! तुमने ऐसा क्यों किया ? हर बार गेंद को मेरी और क्यों भेज देते थे ? . भरत जी बोले – भईया ! जब में खेल रहा था तब मुझे अपन पक्ष संसार के रूप में दिख रहा था, और गेंद, जीव के रूप में देख रहा था, . और मै देखता कि जीव इस संसार में बहुत मार खाता है, बहुत भटक रहा है, और इसे यदि कही शान्ति मिलेगी तो आपकी शरण में ही मिल सकती है. . इसलिए जब-जब ये गेंद रूपी जीव मेरे पास आता, तो मै इसे आपकी शरण में जाने के लिए आपकी ओर भेज देता हूँ. . ये सुनकर भगवान् श्री राम भरत जी से बोले – भरत ! तुम धन्य हो. . इसी तरह एक बार भगवान् श्री राम और भरत में किसी बात को लेकर झगड़ा हो रहा था, . झगड़ा बढ़ गया, बात राजा दशरथ तक पहुँच गई. . दशरथ जी ने जब सुना तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ, कि राम और भरत में झगड़ा, . क्योकि दोनो में इतना प्रेम है कि दोनों में झगड़े की तो बात ही नहीं हो सकती. . दशरथ जी झगड़ा सुलझाने आ गए. और भगवान् राम से पूंछा -राम ! क्या बात है ? . भगवान् श्री राम बोले – पिता जी ! हम सबने कपड़े का बड़ा सुन्दर एक हंस बनाया था, . और उसे हमने थोड़ी दूरी पर एक वृक्ष पर रखा और हम निशाना लगाने लगे, और शर्त ये थी कि जिसका निशाना पहले लगेगा,वही हंस उसी का हो जायेगा. . भरत का निशाना पहले लगा, पर भरत कहता है कि भईया आपका निशाना पहले लगा. . मै कहता हूँ भरत का पहले लगा, भरत कहता है – भईया आपका पहले लगा. . इसलिए ये हंस मै कहता हूँ भरत का है, और भरत कहता है ये भईया आपका है. . जो ये बात दशरथ जी ने सुनी तो बड़े गदगद हो गए. कि दो भाई भी लड़ते है तो इसलिए कि ये मेरा है, ये मेरा. . पर मेरे पुत्र इसलिए लड़ते है कि ये तेरा है, वो भी तेरा है, एक दूसरे की खुशी के लिए लड़ते है . . वास्तव में भगवान श्रीराम और भरत जी का प्रेम ऐसा ही था, जहाँ दोनों एक दूसरे की खुशी के लिए लड़ते थे. ~~~~~~~~~~~~~~~~~
जय जय श्री राधे
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