चैत्र मास की नवमीं तिथि के दिन जब कौशल्या अपनेेे कक्ष में बैठ भगवान विष्णु का ध्यान कर रहीं थीं तब भगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में उनके सामने प्रकट हुए। सदा की भांति मंद-मंद मुस्कुराते हुए भगवान विष्णु ने कौशल्या से कहा, ‘‘आप और आपके पति ने पिछले जन्म में तपस्या की थी। आप दोनों की इच्छा पूरी करते हुए मैंने वरदान दिया था कि अगले जन्म में मैं आपके घर पुत्र बनकर आऊँगा। अपना वचन निभाते हुए मैं आ गया हूँ।’’ कौशल्या ने भगवान से कहा, ‘‘मैंने तो सुना था कि भगवान हमेशा सत्य बोलते हैं लेकिन आज जाना कि भगवान झूठ भी बोलते हैं।’’ भगवान ने आश्चर्य जताया, ‘‘मैंने आपसे क्या झूठ बोला ?’’ कौशल्या ने बड़ा मधुर जवाब दिया, ‘‘आपने तो कहा था कि आप मेरे घर पुत्र के रूप में आयेंगे। लेकिन ये जो चतुर्भुज रूप लेकर आये हैं ये क्या पुत्र का रूप है ? ये तो परमपिता का रूप है। मतलब कि आप झूठे हैं।’’ भगवान को बड़ा आनन्द आया। वो समझ गये कि कौशल्या क्या चाहती हैं। वो तुरन्त शिशु रूप धारण कर कौशल्या की गोद में बैठ गये और हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए कौशल्या का आनन्द बढ़ाने लगे। तभी कौशल्या ने कहा, ‘‘मैंने तो सुना था कि भगवान को हर चीज का ज्ञान होता है लेकिन आज जाना कि भगवान बिल्कुल अज्ञानी होते हैं।’’ भगवान ने पूछा, ‘‘ये आप कैसे कह सकती हो ?’’ माता कौशल्या बोलीं, ‘‘आप इस समय मुस्कुरा रहे हैं। इसी से पता चलता है कि आपको इतना भी ज्ञान नहीं कि बच्चा जब जन्म लेता है तो हंसता नहीं, बल्कि रोता है।’’ भगवान ने जान लिया कि माता क्या चाहती हैं और वो तुरन्त रो पड़े।
"जय श्री राम"
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