शरण आये विभीषण को राम के समक्ष लाने से पहले सुग्रीव ने राम से कहा, ‘‘प्रभु, ये शत्रु का भाई है। इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। मेरा मत है इसे बाँधकर रख लिया जाए।’’
किन्तु राम ने मित्रातापूर्वक व्यवहार करते हुए विभीषण को अपनाया, उन्हें सीने से लगाया। जब राम ने विभीषण को अपने बाँहों में भरकर सीने से लगा रखा था तो उनकी नजर सुग्रीव पर गई। सुग्रीव से उन्होंने इशारों ही इशारों में कहा कि ‘‘तुम बुरा मत मानना कि मैंने तुम्हारे सलाह के विरूद्ध काम किया है। मैंने तो तुम्हारी सलाह ही मानी है। तुम्हीं ने तो कहा था कि विभीषण को बाँधकर रख लिया जाए। अब मेरे पास रस्सी तो थी नहीं सो मैंने विभीषण को अपने दोनों बाँहों में बाँध लिया। ये प्रेम का बंधन है। इसे तोड़ना विभीषण के लिए असंभव है।’’
"जय श्री राम"
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