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"समर्पण"


          एक भक्त को जीवन में कभी भी यह विचार नहीं करना चाहिए कि वह अकेला हैं, क्योंकि भले ही कोई साथ दिखे या न दिखे ठाकुरजी सदैव ही साथ थे, साथ हैं और साथ सदैव रहेंगे फिर चाहें भक्त साथ रहें या न रहें।
         एक वैष्णव में यदि किसी बात की कमी है तो मात्र समर्पण की, बस एक बार हृदय से यह कहें - "हे नाथ ! मैं आपका था आपका हूँ और आपका ही रहूँगा, ऐसा करने से कभी भी अकेलापन नहीं महसूस होगा, ठाकुरजी हमेशा साथ नज़र आएँगे।
         मन की हर बात, हर इच्छा, हर समस्या जो हो वह ठाकुरजी से कहे, जैसे एक माँ की नजर सदा अपने बालक पर रहती है वैसे ही प्रभु की नजर सदैव हम पर रहती है।
         प्रभु की ओर समर्पित होकर देखिए जैसे गोपियाँ जब माखन बिलोती थी तो कृष्ण को याद करते हुए बिलोती थी और जब कृष्ण उनके माखन को चुराते थे तो उन्हें बहुत आनंद आता था।
        जो भी कार्य करें ठाकुरजी को केन्द्र में रखकर करें और मन में गुरु मंत्र का जप करते रहें।

                          "जय जय श्री राधे"
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