"मैया मैं बाहर खेलने जाऊँ" नन्हे कान्हा मनुहार भरे स्वर में मैया से अति दुलार से पूछ रहे हैं। मैया एक क्षण के लिये भी अपने लला को अपने नेत्रों से ओझल नहीं करती, अत:अपने लाडले कुँवर को प्यार से समझाती हैं। "मेरे लाल, बड़े भैया बलराम को बुला लो, अपने सब सखाओं को बुला लो और यही मेरे नेत्रों के समक्ष खेलो"। "क्यों मैया ?" "क्योंकि मैं भी तुम्हारी क्रीड़ा के आनन्द का रसास्वादन करना चाहती हूँ, यदि तुम बाहर खेलने चले गये तो मैं तुम्हें खेलते हुये कैसे देखूँगी ?"
नन्हे कान्हा की समझ में मैया की कुछ बात आई, कुछ नही आई, अत: अपनी नन्ही बुद्धि से अपने अनुसार बात का अर्थ लगाकर बोले:- "मैया, क्या तू भी हम सब के साथ खेलेगी" मैया यशोदा ने नन्हे कुँवर को रोकने के लिये हामी भर दी। खिल उठे नन्हे कान्हा, उछल-उछलकर, कूद-कूदकर आनन्दित हो-होकर बलदाऊ को पुकारने लगे:- "आओ दादा, सब सखाओं को बुला लो आज मैया भी हमारे साथ खेलेगी।"
खेल प्रारंभ हो गया, किसके नेत्र बंद होगें और कौन करेगा ? नन्हे कान्हा ने हुलस कर प्रत्युत्तर दिया:- "मेरे नेत्र मैया बंद करेगी।" अभूतपूर्व पारलौकिक दृश्य है, नैसर्गिक आनन्द प्रदान करने वाला, ग्वाल बालों के साथ मैया यशोदा भी आँख मिचौली खेल रही है। मैया यशोदा ने अपने हाथों से अत्यधिक कोमलता से अपने लाडले कुँवर के नेत्रों को बंद किया। अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड के स्वामी ने मैया यशोदा से अपने दोनों नेत्र बंद करवाए। बलराम जी और सारे सखा भाग भाग कर इधर-उधर छुपे गये।
मैया ने लाडले लला के नेत्रों से हाथ हटाये और अति धीमे स्वर मे लला के कान में फुसफुसाई:- "बलराम उधर छुपा है।" नन्हे कान्हा बोले:- "नही, बलदाऊ को नही, मैं तो श्रीदामा को छूऊँगा, मुझे तो श्री दामा को चोर बनाना है।"
सभी बालक दौड़-दौड़कर आते हैं, बृजरानी को छू-छू कर चले जाते हैं। अंत में सुबल और श्रीदामा रह जाते हैं, कान्हा अभी तक श्रीदामा को पकड़ नही पाये हैं। मैया नन्हे कान्हा की ओर देखकर हँसती हुई कहती है:- "नन्हे कुँवर, इस बार तो तुम हार गये दिखते हो।" मैया से इतना सुनना है कि नन्हे कान्हा ललकारते हुए अति तीव्र गति से सुबल की ओर उसे पकड़ने दौड़े, किन्तु अचानक पकड़ लिया श्रीदामा को जाकर, जो कि उन्हें सुबल की ओर जाता हुआ देखकर निश्चिंत खड़ा है। सारे सखा जोर-जोर से ताली बजा-बजा कर हँसने लगे:- "श्री दामा चोर बन गया।" नन्हे कान्हा श्रीदामा को चोर बनाकर उसे मैया के पास लाये, अब मैया श्री दामा के नेत्र बंद करेगी।
मैया यशोदा भावविभोर हो उठी अपने लाडले कुवँर की चतुराई देख कर, बार-बार रोहिणी जी की ओर मुड़कर मुस्कराकर कह रही है:- "जीत्यो है पूत मोर"
यशस्वनि यशोदा जी के हर्ष का पारावार नहीं, सारे बालक नेत्रों के समक्ष हैं, साथ ही अपने लाडले प्राण प्रिय कुँवर की निश्छचल भोली चतुराई का सुख-दर्शन।
"जय जय श्री राधे"
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