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श्री गुरु नानक देव जी

एक बार श्री गुरु नानक देव जी के पास भगवे कपडे पहने हुए एक साधू आया तब गुरु नानक देव जी अपने घर पर कोई काम कर रहे थे,उनको देख कर उस साधू ने सोचा के इनकी वेशभूषा तो महात्माओं जैसी नहीं है  जिस त्यागी महात्मा की तलाश में मैं यहाँ आया हूँ यह वोह नहीं है, उस साधू ने गुरु नानक देव जी को परणाम किया,और उनसे कहा के बाबा जी मैं बहुत दूर से आया हूँ,मुझे सच्चे ज्ञान की तलाश है,क्या आप मुझे किसी सच्चे और त्यागी महात्मा के बारे में बता सकते है,कुल मालिक संत सतगुरु कभी सामने से नहीं कहते के वह सच्चे संत यां महात्मा है,गुरु नानक देव जी ने उस साधू को कहा जी बिलकुल मैं ऐसे सच्चे महात्मा को जानता हूँ,और वह आपको सच्चा ज्ञान ज़रूर देंगे,उस महात्मा का नाम भाई लालो है,वह एक बड़ई का काम करते है, आप उनके पास चले जाये,आप उनको जाकर कहना के नानक ने भेजा है,
                                                 वह साधू बिना समय गवाएं भाई लालो के घर पहुँच गया घर का दरवाजा बंद था,उस साधू ने जब घर का दरवाजा  खटखटाया तो भाई लालो ने दरवाजा खोला और पुछा के आप कौन है ,इस पर उस साधू ने कहा, ''जी मुझे भाई लालो से मिलना है'' भाई लालो ने कहा जी कहिये मैं ही लालो हूँ,साधू ने कहा जी मुझे नानक जी ने आपके पास भेजा है सच्चे ज्ञान के लिए,,भाई लालो को समझने में देर न लगी भाई लालो ने कहा के आप अन्दर आ जाइये,भाई लालो ने उस साधू को एक खाट पर बिठा दिया और कहा के आप यहाँ बैठ जाइये मैं थोडा काम निपटा लूं,भाई लालो  जल्दी जल्दी कुछ सामान घर के बरामदे  में इकट्ठा करने लगा,इस पर उस साधू ने पुछा के लालो जी आप यह क्या कर रहे है,इस पर भाई लालो ने कहा के आज मेरा जमाई अपने गाँव से जब दुसरे गाँव जायेगा तो किसी दुर्घटना में उसकी मौत हो जाएगी,मैं उसके अंतिम संस्कार का इंतजाम कर रहा हूँ,इस पर साधू जो अभी तक खाट पर बैठा यह सब कुछ देख रहा था,चोंक कर खड़ा हो गया,और बोला लालो जी ऐसा कैसे हो सकता है आप कैसी बात कर रहे है,इस पुरे संसार में किसी में ऐसा धैर्य नहीं की मरने से पहले उसके अंतिम संस्कार का इंतजाम करे, और अगर आपका अपना जमाई है तो आपकी आँखों में पानी क्यूँ नहीं है, मुझे लगता है वोह आपका जमाई नहीं कोई दूर का रिश्तेदार होगा,भाई लालो ने कहा मैं आपसे झूठ क्यूँ बोलूँगा,वह मेरा अपना जमाई है,

  साधू ने कहा अगर वह आपका अपना जमाई है तो आप उस दुर्घटना के बारे में उसको बता दो और उसको बोलो के अभी अपने गाँव से बाहर  मत निकले,भाई लालो ने कहा के ऐसा नहीं हो सकता यह तो कुदरत का नियम है और इस नियम को चलाने वाला अकाल पुरुष है मैं उसके काम में दखल अंदाजी नहीं कर सकता,जो होना है वोह होकर ही रहेगा,साधू ने कहा ऐसा बिलकुल नहीं है अगर आपको पहले से ज्ञात हो गया है तो आप उनको बचा सकते है,इस पर भाई लालो ने कहा आप व्यर्थ में बहस कर रहे है,अगर बचा जा सकता है तो आप बच के दिखाओ,साधू ने कहा जी मैं आपकी बात का मतलब नहीं समझा,,भाई लालो ने कहा के मेरे घर के सामने जो आपको पेड़ नज़र आ रहा है,आज से चार दिन बाद आपको उसी पेड़ से लटका कर फांसी दी जाएगी,यह सुन कर साधू के पैरों से ज़मीन निकलने लगी।
  
  साधू उसी समय ज्ञान लिए बिना ही वहां से निकल कर भागने लगा,साधू ने सोचा के जिस पेड़ के साथ मुझको फांसी दी जाएगी ,अगर मैं उस  पेड़ से दूर भाग जाऊ तो मैं बच सकता हूँ, मृत्यु का भय होने की वजह से वोह साधू 2 दिन तक लगातार दौड़ता रहा, भूख और प्यास की वजह से साधू बेहोश होकर गिर गया,,जब साधू को होश आया तो उसने देखा के अभी भी मृत्यु के 2 दिन बाकी हैं, रास्ते को जानता  नहीं था और ऊपर से मृत्यु का भय बुद्धि ने काम करना मानो बंद कर दिया था,
जिस रास्ते से 2 दिन लगातार भाग कर आया था,वापिस उसी रास्ते पर भागने लगा,2 दिन बाद उसी पेड़ के नीचे जाकर  खड़ा हो गया,4 दिन लगातार भागने की वजह से थकावट से हड्डियाँ टूट रही थी,जैसे ही साधू ज़मीन पर बैठा उसी वक़्त नींद आ गयी, वहां पास में ही तीन चोर आपस में चोरी का माल बाँट रहे थे, चोरी का सारा माल बांटने के बाद उनके पास एक बेश कीमती हार बच गया,जब एक चोर उस हार को बराबर बांटने के लिए उस हार को तोड़ने लगा तो बाकी के 2 चोरों ने कहा के दोस्त इस हार की बनावट और चमक बहुत ही बढ़िया है,अगर इसको आधा आधा बाँट लिया तो इस हार की शोभा ही खत्म हो जाएगी,,जब वोह आपस में बात कर रहे थे तभी एक चोर की नज़र पेड़ के नीचे सोये हुए साधू पर गयी,एक चोर ने कहा के देखो भाई अगर इस हार को आपस में नहीं बांटना तो यह हार इस साधू को दे देते है,इसका भी गुजारा हो जायेगा,चोरों ने ऐसा ही किया उस बेश  कीमती हार को साधू के गले में डाल कर वहां से चले गए

     चोरी की खबर पुरे गाँव में फ़ैल चुकी थी,जब हाकिम के सैनिक चोरों को खोजते खोजते उस पेड़ के पास आये तो उन्होंने उस साधू के गले में चोरी का हार देखा तो उसको गिरफ्तार कर लिया गया,गाँव का हाकिम भी वहां आ गया,पुराने समय में चोरी की बहुत ही सख्त सज़ा होती थी,हाकिम ने वहां खड़े खड़े ही साधू को सजा सुना दी,हाकिम ने अपने सैनिकों से बोला के चोरी का माल इस साधू के पास से बरामद हुआ है,इसलिए इसको इसी पेड़ के साथ फांसी दे दी जाये।
                                            साधू यह देख कर हक्का-बक्का रह गया,,उसने अपने बेकसूर होने का बहुत दावा किया मगर सैनिकों ने एक न सुनी,जब साधू को फांसी देने का इंतजाम कर दिया गया तो हाकिम ने उस साधू  से पुछा के तुम्हारी कोई आखिरी ख्वाहिश है तो बताओ,साधू ने कहा के यही पास के एक घर में भाई लालो रहता है मैं उनसे मिलना चाहता हूँ ,हाकिम के सैनिक भाई लालो को बुला कर ले आये,जब भाई लालो वहां पहुंचा तो साधू ने उनसे कहा के आपकी बात बिलकुल सच हुई है,,मैंने परमात्मा का विधान बदलने की अर्थात मृत्यु से भागने की बड़ी कोशिश की मगर असफल हुआ,अगर हो सके तो मुझे  इस चोरी के दाग से बचा लीजिये,मैं ऐसे कृत काम का दाग लेकर मरना नहीं चाहता।
                                    
  भाई लालो ने कहा मैं तो उसी गुरु नानक का बहुत छोटा सा दास हूँ जिन्होंने आपको यहाँ मेरे पास भेजा है,वोह ही कुल मालिक है और वह ही सब कुछ करने में सक्षम है,,उनके पास ज्ञान के बहुत ही अनमोल खजाने हैं,और उनको बाँटने का हुक्म भी है,आप भी उनका ध्यान लगा कर उनसे अर्ज़ करो ,मैं भी आपके लिए उनसे प्रार्थना करता हूँ,उधर जब  चोरों को पता चला के उस बेश कीमती हार की वजह से उस निर्दोष साधू को फांसी की सजा हो रही है,उन चोरों ने सोचा के सारी ज़िन्दगी हमने चोरी की डाके डाले शायद परमात्मा से  इन काले धंधों की माफ़ी मिल भी जाये मगर आज अगर हमारी वजह से उस साधू को फांसी हो गयी तो हमें परमात्मा  कभी माफ़ नहीं करेगा, वह चोर सारा माल लेकर हाकिम के सामने पेश हो गए,और हाकिम से कहा के यह साधू निर्दोष है,हम तीनों ने ही इनके गले में यह हार डाला था,इतना सुनते ही हाकिम ने उस साधू को फांसी की सजा से बरी कर दिया

                            भाई लालो ने उस साधू से कहा के जब आपने गुरु नानक जी को पहली बार देखा तो उनकी वेश्बूषा की वजह से आप संशय में आ गए,,सच्चा बैरागी कपड़ों से नहीं मन से होता है,भगवे कपडे पहनने से कोई साधू नहीं बन जाता,,साधू नाम जो साधना करें,  परमात्मा का क़ानून सब जीवात्माओं के लिये एक जैसा ही होता है,मगर जो वक़्त का सच्चा गुरु होता है वोह अपनी कमाई में से अपने मुरीद को बहुत कुछ दे देता है और सूल की सुई बना देता है ,,,,
          *करता करे न कर सके*
            *गुरु करे सो होए*

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