ठाकुरजी का प्रसाद


*महाराष्ट में केशव स्वामी नाम के एक महात्मा हुऐ हैं। वे जानते थे कि भगवन्नाम जपने से कलियुग के सारे दोष दूर हो जाते हैं।*

*यदि कोई शुरु में होठों से भगवान का नाम जपे, फिर कंठ में, फिर हृदय से जपे और नाम जप में लग जाय तो हृदय में भगवान प्रकट हो जाते हैं।*

*एक बार केशव स्वामी बीजापुर (कर्नाटक) गये। उस दिन एकादशी थी। रात को केशव स्वामी ने कहा, चलो, आज जागरण की रात्रि है, सब भक्तों के लिए प्रसाद की व्यवस्था कर लेता हूं।*

*अब फलाहार में क्या लिया जाए? रात्रि को फल नहीं खाना चाहिए, यह सोच कर बोले; सौंठ और मिश्री ठीक रहेगी क्योंकि मिश्री शक्ति देगी और सोंठ गर्माहट के साथ साथ कफ से भी राहत पहुंचाएगी।* 

*अब काफी देर भी हो गयी थी, रात्रि के ११ बज गये थे, दुकानदार दकाने बंद कर सब सो गये थे। किसी एक दुकानदार को केशवजी ने जगाया।*

*उन्होंने कहीं से सुन रखा था कि अकेले मिश्री उपवास में नहीं खानी चाहिए, इस लिए सोंठ और मिश्री ले आए और ठाकुरजी को भोग लगाया।*

*लालटेन का जमाना था। सोंठ के टुकड़े और वचनाग के टुकड़े एक जैसे लगते हैं। अँधेरे में और आदी नींद में दुकानदार ने सोंठ की बोरी के बदले वचनाग की बोरी से सोंठ समझ कर पाँच सेर वचनाग तौल दिया।*

*अब वचनाग तो हलाहल जहर होता है, सर्प या बिच्छू के डंक आदि की औषधि बनाने वाले वैद्य ही उसे ले जाते थे।*

*अँधेरे में मिश्री के साथ वचनाग पीसकर प्रसाद बनाया और ठाकुरजी को भोग लगा दिया।*

*ठाकुर जी ने देखा कि केशव स्वामी के साथ सभी भक्त सुबह होते-होते मर जायेंगे। उनको तो बेचारों को खबर भी नहीं थी कि सोंठ की जगह यह हलाहल जहर आया है। ठाकुरजी ने करूणा-कृपा करके प्रसाद में से जहर स्वयं खींच लिया।*

*सुबह व्यापारी ने देखा तो बोला, अरे... रे... रे... यह क्या हो गया? बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे! सोंठ का बोरा तो ज्यों का त्यों पड़ा है, मैंने गलती से वचनाग दे दिया! लगता है कि वे सब भक्त मर गये होंगे। मेरा तो सत्यानाश हो जायेगा!*

*व्यापारी डर गया, दौड़ा-दौड़ा आया और बोला, कल रात मैंने गलती से वचनाग तौल के दे दिया था, किसी ने खाया तो नहीं?*

*केशव स्वामी बोले, वह तो रात में ही, ठाकुरजी को भोग लगाने के बाद, प्रसाद के रूप में भक्तों में बँट गया था।*

*दुकानदार; कोई मरा तो नहीं?*

*नहीं..!! किसी को कुछ नहीं हुआ।*

*केशव स्वामी और उस व्यापारी ने मंदिर में जाकर देखा तो ठाकुरजी के शरीर में विकृति आ गयी थी।*

*मूर्ति नीलवर्ण की हो गयी थी, एकदम विचित्र लग रही थी, मानो ठाकुरजी को किसी ने जहर दे दिया हो।*

*केशव स्वामी सारी बात को समझ गये, बोले; प्रभु! आपने भाव के बल पर यह जहर पी लिया, आप तो सर्वसमर्थ हो। पूतना के स्तनों से हलाहल जहर पी लिया और आप ज्यों-के-त्यों रहे, कालिय नाग के विष का असर भी नहीं हुआ था आप पर, तो यह वचनाग का जहर आपके ऊपर क्या असर कर सकता है भला?*

*आप कृपा करके इस जहर के प्रभाव को अपने उपर से हटा दिजीए और पूर्ववत् हो जाइये।*

*इस प्रकार प्रार्थना व स्तुति की तो देखते ही देखते दुकानदार और भक्तों के सामने भगवान की मूर्ति पहले जैसी प्रकाशमयी, तेजोमयी हो गयी।*

*समय कैसा भी हो, स्थिति कैसी भी हो, यदि भाव शुद्ध हैं और हृदय में भगवान परमात्मा के रूप में विराजमान, तो भक्त का अहित कभी हो ही नही सकता, यह दृढ़ विश्वास होना चाहिए।*

*वह तेजोमय, लीलाधारी भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों की रक्षा हर प्रकार से करते हैं।*

*भक्तवत्सल भगवान की जय!!*
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*((((((जय जय श्री राधे!))))))*
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