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*🌹"भक्त श्री रंगजी" 🌹💫*

           श्री रंग जी श्रीअनन्तानन्दाचार्यजी महाराज के प्रधान शिष्यो में एक थे। गृहस्थाश्रम के समय आपका निवास द्यौसा नामक ग्राममें था, जो तत्कालीन जयपुर राज्य में आता था। आप वैश्यकुल में उत्पन्न हुए थे।आपके यहाँ सेवाकार्य करने के लिये एक नौकर रखा गया था, परन्तु वह स्वभाव से बडा ही दुष्ट था। कालवश मृत्यु को प्राप्तकर वह यमलोक गया। वहाँ उस पापी को यमराज ने दूतकार्य में नियुक्त किया और मृत प्राणियों के प्राणों को लानेका कार्य सौंपा।
          एक बार यमराज ने उसे एक बनजारे के प्राणोंका हरण करके लाने को कहा, जो कि उसी द्यौसा ग्राम का रहनेवाला था, जहाँ वह मरने से पहले श्री रंग जी के यहाँ नौकरी करता था। वहाँ आने पर वह सबसे पहले वह श्री रंग जी से मिलने गया। वे उसे देखते ही चौंक पडे और बोले- अरे मैंने सुना कि तू मर गया है, फिर तू यहाँ कैसे आ गया ? यमदूत ने कहा – मालिक ! आपने ठीक ही सुना था, मैं मर चुका हूँ और अब यमदूत बन गया हूँ। यहाँ पास जो बंजारा रहता है, मैं उस बनजारे को ले जाने आया हूँ। श्री रंगजी ने कहा - अभी तो वह पूर्ण स्वस्थ है और थोडी देर पहले ही मेरे यहाँ से कुछ माल लादकर ले गया है, उसे तुम कैसे ले जाओगे ? उसने कहा - मैं उसके बैल के सींगपर बैठ जाऊँगा, जिससे कालप्रेरित वह बैल सींग मारकर उसका पेट फाड़ देगा। श्री रंगजी ने पूछा - क्या तुम लोग सबके साथ ऐसा ही व्यवहार करते हो ? यमदूत बोला - नहीं, हम लोग केवल पापियों के साथ ही ऐसा व्यवहार करते हैं, भगवान् के  भक्तों की और तो हम देख भी नहीं सकते, अत: मैं आपको भी यह सलाह देने आया हूँ कि जीवन के शेष भाग में आप भगवद्भक्ति कर लें। मैंने आपका नमक खाया है, अत: आपको कष्ट में पड़ते नहीं देखना चाहता है। आपको यदि मेरी बातों पर विश्वास न हो तो आप मेरे साथ बनजारे के घर चलिये। मैं केवल आपको ही दिखायी दूँगा, दूसरा कोई मुझे नहीं देख सकेगा।
          यह कहकर यमदूत बनजारे का प्राण हरण करने के उद्देश्य से उसके घर की ओर चल दिया। श्री रंगजी भी उसके पीछे-पीछे चल दिये, वहाँ जाकर श्री रंगजी ने देखा कि बनजारा अपने बैल को खली-भूसा चला रहा है। बैल बार-बार सिर हिला रहा था, जिससे बनजारे को खली-भूसा चलाने में असुविधा हो रही थी; अत: उसने एक हाथ से बैल को जोर से हटाया। ठीक उसी समय यमदूत जाकर बैल के सींगो पर बैठ गया, फिर तो कालप्रेरीत बैल ने क्रोध में भरकर सींगो से ऐसा प्रहार किया कि बनजारे का पेट फट गया, उसकी आँतें बाहर निकल आयीं और वह वहीं तुरन्त मर गया।
          श्री रंगजी की आँखों के सामने घटी इस आश्चर्यमयी घटना ने उनको आँखें खोल दीं, उन्होंने श्रीअनन्तानन्द जी महाराज के चरण पकड़े और उनके उपदेशानुसार भगवद्भक्ति करने लगे।
          श्री रंग जी के पुत्र को रात में भूत दिखायी देता था उसके भय से उसका शरीर नित्य सूखता ही चला जाता था। श्री रंगजी ने बालक से इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि रात में भयंकर प्रेत के दिखने से मैं दिन रात चिन्तित रहता हूँ। तब श्रीरंगजी पुत्र के सोने के स्थान पर स्वयं सोये। रात होते ही वह प्रेत आया। श्रीरंगजी क्रोध करके उसे मारने के लिये दौड़े और कहने लगे - बालक को डरा के परेशान करता है। प्रेत ने दैन्यतापूर्वक कहा कि आप कृपा कर के मुझे इस पाप योनि से मुक्त करके सद्गति प्रदान कीजिये। मैं जाति का सुनार हूँ परायी स्त्री से पाप संबंध के कारण मैं प्रेत हो गया हूँ। अपने उद्धार का उपाय संसार में खोजने के बाद अब आपकी शरण ली है। प्रेत की आर्तवाणी सुनकर श्री रंगजी ने उसे चरणामृत दिया और उसका अत्यन्त सुन्दर दिव्यरूप कर दिया। इस प्रकार श्री रंगजी के भक्तिभाव का गान किया गया है।

"जय जय श्री राधे"🙏🏻💫
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